For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शौक है , अजीब लगता है,

दर्द कोई  रकीब लगता है !

रोज तरसा है मुस्कुराने को 

चेहरे-चेहरा गरीब लगता है !

ये गम हैं कि छोड़ते ही नहीं 

कोई रिश्ता करीब लगता है !

होगा खुशियों का खज़ाना कोई  
हमको अच्छा सलीब लगता है !

नभ के तारे सभी हमारे हैं ,

यही अपना नसीब लगता है !
_____________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vandana on July 2, 2013 at 7:33am

रोज तरसा है मुस्कुराने को 

चेहरे-चेहरा गरीब लगता है !

ये गम हैं कि छोड़ते ही नहीं 

कोई रिश्ता करीब लगता है !

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 2, 2013 at 7:17am

सुन्दर मुक्तिका 

नभ के तारे सभी हमारे हैं ,

यही अपना नसीब लगता है !..........वाह !

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 1, 2013 at 7:48pm

मन भावन गीत रचना बहुत सुन्दर लगी, हार्दिक बधाई श्री विशम्भर शुक्ल जी, सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 1:19pm

बहुत ही सुकोमल भाव लिए सुन्दर रचना आदरणीय हार्दिक स्वीकारें.

Comment by Aarti Sharma on July 1, 2013 at 1:03pm

दिल को छुते हुए मार्मिक भाव...बहुत खूब सर

Comment by विजय मिश्र on July 1, 2013 at 12:07pm
भाव से भरी , दर्द दुश्मनों जैसा और गम से रिश्ता करीब का और इसे नाम दिया अजीब शौक का . यह छोटी सी कविता कितने मर्मस्पर्शीता को समेटे है स्वेम में ठीक कवि के विशाल हृदय की तरह . बधाई हो विश्वम्भरजी
Comment by रविकर on July 1, 2013 at 10:27am

बहुत बहुत बहुत बढ़िया -

शुभकामनायें आदरणीय-

Comment by vijay nikore on July 1, 2013 at 1:13am

भाव मन को छू गए।

बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Harish Upreti "Karan" on June 30, 2013 at 12:49pm

अति सुन्दर सर बधाई........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 30, 2013 at 1:52am
आदरणीय..विश्वम्भर शुक्ल जी, बेहद खूबसूरत पंक्तिया व रचना अभिव्यक्ति 'हार्दिक शुभकामनाऐ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service