भक्तों के मुख मलिन हैं ,पूजा-गृह में गर्द ,
प्रभु अपने किससे कहें देव-भूमि का दर्द !
हुई न ऐसी त्रासदी जैसी है इस बार ,
प्रभु ने झेली आपदा बदरी क्या केदार !
बादल,बारिश,मृत्यु के कारण बने पहाड़ ,
धरती काँपी,मनुज के थर-थर काँपे हाड़ !
पाहन के भगवान जी ,विपदा पत्थर संग,
भक्तों ने खुद ही लड़ी खूब मौत से जंग !
श्रद्धा इनकी देखिये ,कितने भक्त महान,
हर कि पैडी पर हुआ कीचड़ में ही स्नान !
_______________प्रो .विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
समसामयिक रचना के लिए हार्दिक बधाई,साथ ही सुन्दर छंद विधान !
सामयिक और सार्थक दोहे | वाह ! बहुत खूब दिल से हार्दिक बधाई आदरणीय श्री विशम्भर शुक्ल जी
भक्तों के मुख मलिन हैं ,पूजा-गृह में गर्द ,
प्रभु अपने किससे कहें देव-भूमि का दर्द !
आदरणीय विश्वम्भर शुक्ल जी , सादर अभिवादन !
आदरणीय विशम्भर जी प्रभु के दर्द को बड़े ही अच्छे ढ़ग से बयान किया है । बहुत आभार
आ0 विश्वम्भर सर जी, बहुत ही दर्दनीय चित्रण सहित सुन्दर दोहे रचे है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। किन्तु अन्तिम दोहा एक बार फिर से देख लें। सादर,
आदरणीय बहुत ही सुन्दर एवं उत्तम दोहे रचे हैं, सुन्दर सत्य सटीक दोहों हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
यही श्रद्धा चेतना बन जाये तो त्रासदी को मिटीगेट करने में बल मिले।
सार्थक रचना परबधाई
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..................... |
आदरणीय सादर नमस्कार , हिन्दू धर्म की जड़ें इतनी गहरी है , ये एक त्रासदी उसे हिला नही सकती अच्छे दोहों के लिये धन्यवाद !
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