ज़िंदगी भली
रुलाती भी है कभी
करमजली !
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आग ज़िंदगी
अनुराग ज़िंदगी
ज़िंदगी प्यास !
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ज़िंदगी ,बहो
दर्द हैं नदी जैसे
कुछ न कहो !
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फूलों ने डसा
काँटों ने सहलाया
अहा ज़िंदगी !
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टटोलें मन
स्वयं प्रकाश-पुंज
यही जीवन !
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मुठियों में बंद
आँधियों से न डर
जी बेखटक !
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~
मन प्रभात
मन ही दुपहर
सूरज है न !
~
~
सहेज मत
दर्द की ये बांसुरी
फेंक दे दूर !
~
~
शून्य से चले
छू लेंगे ही अनंत
जब भी अंत !
~
~
उड़ती रही
हाथ पर तितली
उड़ ही गई !
_______________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
फूलों ने डसा
काँटों ने सहलाया
अहा ज़िंदगी !
बहुत सुन्दर हाइकु। अन्य हाइकु भी प्रभावित करते हैं। बधाई वि० शु० जी !
आ0 विश्वम्भर सर जी,
‘टटोलें मन
स्वयं प्रकाश.पुंज
यही जीवन !‘
......अतिसुन्दर हाईकू। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणिय शुक्ला जी , आप की रचनाएं हमेशा से जीवन दर्शन से पूरीत अनुभवों कई नदियों बहाती चलती है . पाठक गण इसे खूब पसंद करते हैं...लेकिन यह कितना अच्छा होता अगर आप भी ओबीओ की रचनाओं पर अपना अमूल्य टिपणियों प्रस्तुत करते . सभी नये लखको को यही आशा रहते हैं कि कोई विद्व जन उन्हें मार्ग्दर्शन कराएं.
फूलों ने डसा
काँटों ने सहलाया
अहा ज़िंदगी !
~
~
टटोलें मन
स्वयं प्रकाश-पुंज
यही जीवन !.................सादर /कुंती.
भावनाओं में भिगोई हुई बहुत ही खूबसूरत हाइकू के प्रस्तुतिकरण पर शुभकामनाऐं स्वीकारिये
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियों का प्रस्तुतिकरण आपने किया...' शुभकामनाऐं................................
मुठियों में बंद
आँधियों से न डर
जी बेखटक !
आप हायकू विद्या मे माहिर है , हर बार हमे सिखने को मिलता है विशम्बर जी |
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