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एक~
*
नफ़रत जितनी उतना प्यार,

इन पर अपना क्या अधिकार,

एक बिंदु पर पड़ा ठहरना 

सरहद को करना मत पार !

दो~
*
ये कैसी इसकी रफ़्तार ,
बहुत प्यार धीमा है यार ,

सीमाएं कुछ उनकी हैं तो 

अपनी भी सीमा है यार !

तीन~
*
नफरत छोडो ,प्यार लुटाओ 

खुशियाँ और सनेह बाँट दो ,

दिखें अगर मजहबी दिवारें 

सीमाएं सब काट-छांट दो !

चार ~
*
ये आपकी नज़र है और मित्र दुआ है ,
आपकी दुआ से ही आकाश छुआ है,

जब गिरा कहीं मै कभी ठोकरें खाकर 

अनमोल प्यार आपका नसीब हुआ है !

पांच ~

*
लौट आया जो कल गया कोई ,
दांव क्या खूब चल गया कोई ,

दोस्ती अजनबी से की हमने 

चित्र फिर से बदल गया कोई !

________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ                   (मौलिक और अप्रकाशित रचना )


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Comment

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Comment by vijay nikore on July 3, 2013 at 9:44pm

मुक्तक अच्छे लगे। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on July 3, 2013 at 9:35pm

आपको इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई!
आपसे एक निवेदन करना चाह रहा था कि इस मंच पर दूसरे रचनाकारों को आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है इसलिए कुछ समय निकालकर उनकी रचनाओं पर अपना मार्गदर्शन अवश्य दिया करिए।
सादर!

Comment by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 3:12pm

नफ़रत जितनी उतना प्यार,

इन पर अपना क्या अधिकार,

एक बिंदु पर पड़ा ठहरना 

सरहद को करना मत पार ! sunder panktiya

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 2:15pm

मित्र Laxman Prasad Ladiwala जी ,आपका हार्दिक आभार सराहना के लिए !

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 3, 2013 at 2:14pm

आभार आपका Dr.Prachi singh जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2013 at 8:55am

अपनत्व के विविध पहलुओं पर सुन्दर मुक्तक आदरणीय प्रो० विशम्भर शुक्ल जी 

तीसरे मुक्तक पर एक बार पुनः गौर कर लें. सादर.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 2, 2013 at 7:18pm

सभु मुक्तक सुन्दर और सार्थक है | हार्दिक बधाई श्री विशम्भर शुक्ल जी | सादर 

Comment by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 4:09pm

आपका बहुत बहुत आभार आपकी  सराहना से बल मिलता है सम्मान्य राजेश कुमारी जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2013 at 3:08pm

सभी मुक्तक एक से बढ़कर एक हैं आदरणीय आपको हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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