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खुद्दार (सच्ची घटना )

ऑफिस के बाहर खड़ा मै फोन पे बात कर रहा था,तभी अचानक एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया ! कुछ देर देखने के बाद मैंने उससे पूछा क्या?
तो उसने मेरे पैरों की तरफ इशारा किया...मै समझा नहीं फिर मै उसके कपड़े जो बहुत ही पुराने और फटे थे ,देखने लगा!!
इतने में उसने अपने थैले से बूट पोलिश करने का ब्रश और एक डिबिया निकाल ली...फिर तो मै समझ गया यह क्या कह रहा था !!

मुझे भी दया आ गयी कहा चालो भाई अब पोलिश कर ही दो...


मैंने जूते निकाले और वो अपने काम में मस्त ...मै बस उसका हाँथ देख रहा था बहुत लगन से जूते पोलिश कर रहा था !!
जूते पोलिश हो जाने के बाद मैंने उसे २० रुपये का नोट दिया !फिर मैंने कहा अब ठीक है जाओ !!
खुद्दारी तो देखो उसकी ...बोल साहब केवल १० रुपये ही होते है ये लीजिये आपके १० रुपये !!मै तो उसे देखता ही रहा गया !!

फिर मैंने उसे कहा बेटा मै ये पैसे तुझे ख़ुशी से दे रहा हूँ ले ले,वो बोला  साहब गरीब हूँ भिखारी नहीं ......इतना कहकर वो चल दिया !!

मै काफी देर तक सोचता रहा,हे ईश्वर क्यूँ ऐसे लोगों को ही गरीब बनाता है !!

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित 

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Comment by ram shiromani pathak on July 6, 2013 at 7:09pm

हार्दिक आभार गीतिका दीदी //हा सच में पहला प्रयास था थोड़ा तो इधर उधर होना स्वाभाविक  है //आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार आपको //

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 6, 2013 at 5:11pm
आदरणीय..राम शिरोमणि जी, "बहुत अच्छी व सच्ची कथा को पढ़ने के पश्चात, बड़ी खुशी मिली की आज भी खुद्दारी जिंदा है! " हार्दिक बधाई.."

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 6, 2013 at 11:41am

लघुकथा लिखने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है प्रिय राम शिरोमणि जी 

बहुत बहुत बधाई

लघुकथा को साधने का एक सूत्र है : लघुकथा को कसने के लिए उसे दुबारा ज़रूर पढ़ना चाहिए और ऐसा एक-एक शब्द जिसके बिना भी कथा पूर्णता से संप्रेषित होती हो उसे बिलकुल हटा देना चाहिए. जितनी छोटी, रोचक और कथ्य सान्द्र रचना होगी उतनी ही शिल्पगत भी. ( यह मेरी समझ भर है )

सस्नेह 

Comment by vijay nikore on July 6, 2013 at 9:55am

आपकी लघु कथा में बहुत सुन्दर संदेश है। बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by coontee mukerji on July 6, 2013 at 2:49am

आजकल ऐसे खुद्दारी देखने को मिलता कहाँ है.....इस हाइटेक के जमाने में ऐसी घटना सचमुझ कहानी सी लगती है. ..कहते है कि अभी भी धरती पर धर्म एक पैर पर खड़ा है. 

Comment by वेदिका on July 5, 2013 at 11:36pm

 खुद्दार!!

कथा के शिल्प की देखकर लगता है की आपने लघु कथा प्रथम बार लिखने की कोशिश की है, कथा में और भी बिन्दुओ का समावेश किया जा सकता था.   बहरहाल  एक अच्छी कोशिश एक बधाई की  पात्र होती है.  

बधाई आपको राम भैया!! 

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