ऑफिस के बाहर खड़ा मै फोन पे बात कर रहा था,तभी अचानक एक लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया ! कुछ देर देखने के बाद मैंने उससे पूछा क्या?
तो उसने मेरे पैरों की तरफ इशारा किया...मै समझा नहीं फिर मै उसके कपड़े जो बहुत ही पुराने और फटे थे ,देखने लगा!!
इतने में उसने अपने थैले से बूट पोलिश करने का ब्रश और एक डिबिया निकाल ली...फिर तो मै समझ गया यह क्या कह रहा था !!
मुझे भी दया आ गयी कहा चालो भाई अब पोलिश कर ही दो...
मैंने जूते निकाले और वो अपने काम में मस्त ...मै बस उसका हाँथ देख रहा था बहुत लगन से जूते पोलिश कर रहा था !!
जूते पोलिश हो जाने के बाद मैंने उसे २० रुपये का नोट दिया !फिर मैंने कहा अब ठीक है जाओ !!
खुद्दारी तो देखो उसकी ...बोल साहब केवल १० रुपये ही होते है ये लीजिये आपके १० रुपये !!मै तो उसे देखता ही रहा गया !!
फिर मैंने उसे कहा बेटा मै ये पैसे तुझे ख़ुशी से दे रहा हूँ ले ले,वो बोला साहब गरीब हूँ भिखारी नहीं ......इतना कहकर वो चल दिया !!
मै काफी देर तक सोचता रहा,हे ईश्वर क्यूँ ऐसे लोगों को ही गरीब बनाता है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार गीतिका दीदी //हा सच में पहला प्रयास था थोड़ा तो इधर उधर होना स्वाभाविक है //आपके अमूल्य सुझाव के लिए हार्दिक आभार आपको //
लघुकथा लिखने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है प्रिय राम शिरोमणि जी
बहुत बहुत बधाई
लघुकथा को साधने का एक सूत्र है : लघुकथा को कसने के लिए उसे दुबारा ज़रूर पढ़ना चाहिए और ऐसा एक-एक शब्द जिसके बिना भी कथा पूर्णता से संप्रेषित होती हो उसे बिलकुल हटा देना चाहिए. जितनी छोटी, रोचक और कथ्य सान्द्र रचना होगी उतनी ही शिल्पगत भी. ( यह मेरी समझ भर है )
सस्नेह
आपकी लघु कथा में बहुत सुन्दर संदेश है। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आजकल ऐसे खुद्दारी देखने को मिलता कहाँ है.....इस हाइटेक के जमाने में ऐसी घटना सचमुझ कहानी सी लगती है. ..कहते है कि अभी भी धरती पर धर्म एक पैर पर खड़ा है.
खुद्दार!!
कथा के शिल्प की देखकर लगता है की आपने लघु कथा प्रथम बार लिखने की कोशिश की है, कथा में और भी बिन्दुओ का समावेश किया जा सकता था. बहरहाल एक अच्छी कोशिश एक बधाई की पात्र होती है.
बधाई आपको राम भैया!!
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