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पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश -

पाये अध्यादेश से, भोजन जन गन देश |
चारो पाये तंत्र के, दिये हमें पर क्लेश |


दिये हमें पर क्लेश, दिये टिमटिमा रहे हैं |
हुआ तैल्य नि:शेष, काल ने प्राण गहे हैं |


है आश्वासन झूठ, मूठ हल की जब आये |
पाये हल हर हाल, जियें मानव चौपाये ||

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by वेदिका on July 7, 2013 at 6:38am

श्लेष अलंकार का बहुत ही सुंदर प्रयोग! अद्भुत!!  

आदरनीय रविकर जी!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 6, 2013 at 7:27pm

अलंकरण से सुशोभित कुंडलिया छंद रचना के मर्मग्य भाई रविकर को हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 6, 2013 at 11:31am

सुन्दर कथ्य तथ्य शिल्प अलंकार प्रवाह से सुशोभित सुन्दर कुंडलिया के लिए ह्रदय से बधाई आदरणीय रविकर जी 

सादर.

Comment by coontee mukerji on July 6, 2013 at 2:52am

रविकर जी, छोटी सी पर घाव करत गंभीर है.

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