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हाथ में पत्थर उठाये वह पगली अचानक गाड़ी के सामने आ गयी तो डर के मारे मेरी चीख निकल गयी. बिखरे बाल, फटे कपडे, आँखों में एक अजीब सी क्रूरता पत्थर लिए हाथ ऊपर ही रह गया.लेकिन जाने क्यों वह ठिठक गयी पत्थर फेंका नहीं उसने .गाड़ी जब उसके बगल से गुजरी खिड़की के बहुत पास से उसके चेहरे को देखा.अब वहां एक अजीब सा सूनापन था.
कार के दूसरी ओर से एक ट्रक निकल गया. वह कार के पीछे की ओर भागी और ट्रक पर पत्थर फेंक दिया.आसपास दुकानों पर खड़े लड़के हंस रहे थे.वह पगली थी घोषित पगली.ना जाने किस ट्रक या ट्रक वाले ने उसके साथ कुछ बुरा किया था की वह हर ट्रक को अपना निशाना बनाती थी.लेकिन उसकी नफरत पर नियंत्रण था .ट्रक के सामने आ खडी हुई कार को उसने कोई नुकसान  नहीं पहुँचाया था.
युवाओं की भीड़ शहर की मुख्य सड़क पर जुलुस की शक्ल में चली जा रही थी. महंगाई के विरोध में आज भारत बंद का आव्हान है.रास्ते में खुली मिली हर दुकान में ये युवा तोड़ फोड़ लूटपाट करते चले जा रहे थे. सच तो ये है कि इनका आक्रोश किसके विरुद्ध  है ये नहीं जानते ना इन्हें अपना लक्ष्य पता है ना ही इस आक्रोश पर कोई नियंत्रण है. रास्ते में आने वाला हर व्यक्ति,दुकान ,सामान इनका निशाना बन रहे हैं.
पता नहीं पागल कौन है? 
kavita verma 
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Shyam Narain Verma on July 10, 2013 at 1:07pm

रचना पर बहुत बहुत बधाई.....................

Comment by रविकर on July 10, 2013 at 11:03am

बड़ी खूबसूरती से तथ्य समझाया-
आभार आदरेया-

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 9, 2013 at 12:18am
आदरणीया..कविता जी, आप सच कह रही है, "मुझसे ञुटि हो गई, आप से निवेदन है कि मुझे माफ कर दें..." सादर..
Comment by Kavita Verma on July 8, 2013 at 9:25pm

 Jitendra Pastariya ji aapne laghukatha ko padha bahut bahut abhar ...lekin kisi mahila ki jindagi me doosaron ke dwara kiya koi bura kruty "SHARMNAK GHATNA " us mahila ke liye nahi hoti ye to sharmnak hai us bura kruty karne vale ke aur samj ke liye ..lekin haa vah ghatna aisa asar chhodati hai ki us stri ka sara jeevan hi badal jata hai ...

Comment by वेदिका on July 8, 2013 at 7:00pm

//क्योकि उसके जीवन में इक शर्मनाक घटना घटी थी// 

क्या मालूम किसी ट्रक ने उस औरत के बच्चे के प्राण लिए हों! हम कैसे परिभाषित कर सकते है किसी की त्रासदी या दुःखदाई घटना को शर्मनाक घटना के  रूम में, ताज्जुब है! कौन सी घटना हमारी दृष्टी में शर्मनाक है या सुहानुभूति योग्य ये कैसे तय करते है लोग, मेरी समझ के परे है..!  उस पीड़ा खाई  अबोध महिला को  शर्मनाक घटना की शिकार कह के उसे हाशिये पे ला कर रख देना, क्या कहलाता है ???   

सादर!      

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 8, 2013 at 10:06am
आदरणीया..कविता जी, सच..आखिर," पागल है कौन..?"अपनी लघुकथा में बहुत ही चिंतनीय पश्न रख छोड़ा...' लघुकथा में उस महिला ने तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया था क्योकि उसके जीवन में इक शर्मनाक घटना घटी थी , परन्तु कुछ समझदार लोग जो न जाने कौन सी नादानी में ऐसे कर्म करते है उन्हे तो ईश्वर ही सुमति प्रदान कर सकता है! ...'आदरणीय...रचना पर, बहुत बधाई
Comment by वेदिका on July 8, 2013 at 4:45am

क्या कहा जाये, समरथ को नई दोष गुसाई!

आदरणीय कविता जी! आपने बहुत ही मर्मस्पर्शी घटना लघुकथा के माध्यम से साझा की है, जो सत्य प्रतीत हो रही है!

बधाई लीजिये, एक करुण और स्म्वेदित अभिव्यक्ति के लिए!   

    

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