For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आस्था या अनास्था

जब से खबर आयी है माँ का चित्त स्थिर नहीं है तीन दिन तो बड़ी बैचेनी में गुजरे। बार बार दरवाजे तक जाती अकेली खड़ी सूनी सड़क को घंटों तकती रहती फोन की घंटी पर दौड़ पड़ती तो कभी कभी यूँ ही फोन को घूरती रहती कभी बिना घंटी बजे ही फोन उठा कर कान से लगा लेती देखने के लिए की कहीं फोन बंद तो नहीं है .देवघर में दीपक तो पहली खबर के साथ ही लगा दिया था बार बार जा कर उसमे तेल भरती जलती हुई बाती को उँगलियों से ठीक करती और दोनों हाथ जोड़ कर सर तक ले जाती .

बेटे बहू ,बेटी दामाद और नाती पोते केदारनाथ गए थे .आसमान से प्रलय बरसा और रस्ते में आने वालो को बहा ले गया .कल बेटे का फोन आया था वे लोग एक दूसरे से बिछड़ गए हैं और फोन कट गया .तब से माँ की हालत बाबरी सी हो गयी है . फिर एक बार फोन की घंटी बजी जो खबर आयी समझ नहीं आया अच्छी है या बुरी .जितने गए थे उससे आधे लोग कल वापस आ रहे है बाकियों की कोई आस बाकी नहीं बची है .सबके दिलों में सन्नाटा पसर गया .दीपक में तेल डालती माँ के हाथ काँप रहे थे भगवान तुम्हारी कृपा के लिए धन्यवाद दूँ या मासूमों पर तुम्हारे क्रोध  के लिए शिकायत करूँ ? 
कविता वर्मा 
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 469

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 11, 2013 at 6:42pm

बहुत सही चित्रण सचमुच मेरे साले के साडू और मेरे पुराने शहर वाले मौहल्ले के सज्जन के बेटी-जंवाई सहित पूरा परिवार 

आज दिनाक तक लापता है और अब धीरे धीरे असमंजस की पीड़ा स्थाई पीड़ा में बदलती दिख रही है, जिसे यथार्थ में 

अनुभव करते हुए आपकी रचना ने सहसा याद दिला दी | इस प्रकार की बैचेनी का सुन्दर वर्णन | बधाई स्वीकारे आदरणीया 

कविता वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 11, 2013 at 6:30pm

अपनों की जब तक सुधि न मिले... तब तक मन की बेचैनी का बहुत यथार्थ वर्णन 

//भगवान तुम्हारी कृपा के लिए धन्यवाद दूँ या मासूमों पर तुम्हारे क्रोध  के लिए शिकायत करूँ//...असमंजस पीड़ा की इन्तेहाँ के साथ कुछ की सलामती की बेपनाह खुशी... जिनपर गुज़रती होगी कैसा महसूस होता होगा यह कल्पनातीत है...आपने उसे शब्द देने की बहुत अच्छी कोशिश की है 

सादर शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 3:55pm

मर्माहत ऊहापोह को सुगढ अभिव्यक्ति मिली है. आप प्रयासरत रहें

शब्दाक्षरियों के प्रति संवेदनशील रहें. शब्दों की अशुद्धियाँ वाचन के आनन्द में खलल डालती हैं.

शुभेच्छाएँ

Comment by D P Mathur on July 11, 2013 at 9:06am

प्रत्येक दुख में प्रभु पर ही  विश्वास और आस्था बनी रहती है..

Comment by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 7:04pm

बहुत सुन्दर चित्रण आदरणीया //हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service