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सूरज की रश्मियों मे ,

चमक बन के रहते हो ।

जाग्रत करते सुप्त मन प्राण ,

सुवर्ण सा दमके  तन मन । 

चन्द्रमा की शीतलता मे ,

धवल मद्धम चाँदनी से तुम,

अमलिन मुख प्रशांत हो ।

सागर से गहरे हो तुम ,

कितना कुछ समा लेते हो ।

नूतन पथ के साथी ,

जीवन तरंगो के स्वामी ।

मन हिंडोल के बीच ,

सिर्फ तुम किलोल कालिंदी । .

सुनो प्रिय तुम ही ,

तुम ही .....प्रिय तुम ही ।..... अन्नपूर्णा बाजपेई

 

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on July 18, 2013 at 12:55pm

आदरणीय गुरु जी , आदरणीय अशोक जी , आदरणीया प्राची जी , आदरणीय राम शिरोमणि जी , आदरणीय राजेश जी , आदरणीया कुंती जी , आदरणीय अरुण जी एवं आदरणीया प्रीती जी आप सभी के स्नेहसिक्त उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया । ध्वस्त संचार व्यवस्था की वजह से आप सब से काफी लंबे अंतराल के बाद मुलाकात हो पायी है । आशा है अब संचार व्यवस्था सही रहेगी ।  

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 14, 2013 at 12:25am

कितना कुछ समा लेते हो ।

नूतन पथ के साथी ,

जीवन तरंगो के स्वामी ।

मन हिंडोल के बीच ,

सिर्फ तुम किलोल कालिंदी । ..........सुन्दर रचना.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 2:48pm

श्याम के प्रति उद्गार सहज हैं.

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2013 at 9:55pm

आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

बाह्य जगत में ही प्रिय के व्यक्तित्व को प्रतिबिम्बित पाने के उत्कृष्ट भाव से पगी अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on July 10, 2013 at 5:39pm

आदरणीया बहुत सुन्दर रचना /// हार्दिक बधाई

Comment by राजेश 'मृदु' on July 10, 2013 at 1:38pm

अहा । बड़ी सुंदर एवं सधी हुई रचना है, सादर

Comment by coontee mukerji on July 10, 2013 at 1:05pm

अपने मन की भावनाओं को ईश्वर को समर्पित करते हुए बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है.

सादर

कुंती

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 10, 2013 at 11:19am

वाह बेहद सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने आदरणीया इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by mrs.Preeti G.sharma on July 10, 2013 at 10:26am
'Aadrniya, annpurna ji bahut hi sunder rachna,, badhai

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