नींद गवांई,सुख चैन गवांया
अगर-मगर तेरी-मेरी में
समय गवांया ,बातों में
धन दौलत ने लोभी बनाया
ईमान गवांया नोटों में
पूत सपूत न बन पाया
बस ध्यान लगाया माया में
दीन दुखियों की सेवा करता
पुण्य कमाता लाखों में
करता अच्छे कर्म अगर तो
तर जाता भाव सागर से
ईमान धर्म की राह पे चलकर
करता पग के कांटें दूर
वैतरणी भी पार कर जाता
जन्म-मरण से जाता छूट
(मौलिक व अप्रकाशित)
आरती शर्मा
Comment
धर्म की राह सुख की राह
आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय विजय जी...सादर
सत्य को अच्छा दर्शाया है, आदरणीया। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय Shijju S जी ..आभार
रचना सराहने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय राजेश जी,,अपनी कमियों को दूर करने क लिए प्रयत्नशील रहूंगी..आभार
आपके सराहनीय कमेंट से मेरा उत्साह और अधिक बड जाता है.अपना स्नेह एवं आशीर्वाद इसी तरह बनाये रखियेगा ..आपका तहेदिल से धन्यवाद...आदरणीय लक्ष्मण सर..
इस अमूल्य सुझाव के लिया आपका कोटि कोटि धन्यवाद प्रिय प्राची जी ..आभार
आ० आरती शर्मा जी
एक लंबे समय से आपकी रचनाओं की अंतर्धारा को देख रही हूँ...
सात्विक सत्य बोध के बेहद करीब से गुजरती रचनाएँ होती हैं...पर अभिव्यक्ति प्रवाह और प्रस्तुतिकरण के लिहाज से बहुत कमज़ोर रह जाती हैं..
और रचनाएँ भी पढ़ें , स्वाध्याय ही कई बार अपेक्षित अवयवों को सुझाता है और रचनाकर्म को परिष्कृत करने का साधन भी बनता है.
इस प्रस्तुति पर सादर बधाई
शुभेच्छाएँ
सुन्दर गीत रचना जो अंत में आदर्श भाव के साथ धर्म की राह समझाती समाप्त होती है | हार्दिक बधाई आदरणीय आरती शर्मा जी
किसी गीत की तरह लग रही है यह रचना पर कई जगह प्रवाह खटकता रहा, हो सकता है मैं इसे गीत की तरह पढ़ रहा हूं । आपके भाव अच्छे है, सादर
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