For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बंजर बादल चूम रहे हैं/फिर से प्रेत शिलाएं

बंजर बादल चूम रहे हैं

फिर से प्रेत शिलाएं

लोकतंत्र की

लाश फूलती

गंध भरे

गलियारों में

यहां-वहां बस

काग मचलते

तुष्‍ट-पुष्‍ट

ज्‍योनारों में

नित्‍य बिकाउ नारे लेकर

चलती तल्‍ख हवाएं

गंगा का भी

संयम टूटा

वक्र बही

शत धारों में

क्षुब्‍ध, कुपित

पर्वत, हिमनद भी

कह गए बहुत

ईशारों में

पछताते चरणों से लौटी

कितनी विकल दुआएं

निरा अकेला

विक्रम आकर

क्‍या कर लेगा

ऐसे में

बत्‍तीसी की

सभी पुतलियां

सिमट चुकी

हम जैसे में

मूक -शिथिल है आज सभी कुछ

हंसती वैताल कथाएं

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 1:23pm

behtreen sir ji .........kya baat hai anupam rachna hetu  badhaai aapko saadar

Comment by Neeraj Nishchal on July 12, 2013 at 8:03pm

बहुत ही उम्दा

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 5:49pm

आदरणीय विजय निकोर जी एवं बृजेश जी, आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by vijay nikore on July 12, 2013 at 5:04pm

सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 5:00pm

वाह आदरणीय! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई! 

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:27pm

आदरणीया प्राची जी, आपको रचना अच्‍छी लगी, मन आश्‍वस्‍त हुआ, ना चाहते हुए भी आक्रोश की अभिव्‍यक्ति स्‍वत: ही कभी-कभी ऐसे  हो जाती है, आप हमेशा ही मार्गदर्शन करती रही हैं जो मुझे बहुत कुछ सीखने की दिशा में अग्रसर करती रहती है, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:25pm

आदरणीय डॉ0 आशुतोष जी, सुमित नैथानी जी, अरून जी आप सबका हार्दिक आभार, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:24pm

आदरणीय सौरभ जी, आपका इंगितार्थ मैं समझ गया, कोशिश जरूर करूंगा कि सिपिया या सफेदा ही चखने को मिले, सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on July 12, 2013 at 2:22pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी एवं केवल जी, रचना को समय देने के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2013 at 12:35pm

आदरणीय राजेश भाई जी बहुत ही सुन्दर समसामयिक रचना , भाव बहुत ही रोचक है पढ़कर मजा आया. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service