इक औरत सी तन्हाई को
जब यादें कंधा देती हैं
दीर्घ श्वांस की
चंड मथानी
मथ जाती
देह-दलानों को
टूटे प्याले
रोज पूछते
कम-ज्यादा
मयखानों को
गलते हैं हिमखण्ड कई पर
धारा कहां निकलती है
नि:शब्द सुलगती
रात पसरती
उष्ण रोध दे
प्राणों को
कौन रिफूगर
टांक सकेगा
इन चिथड़े
अरमानों को
कैसे पाउं मंजिल ही जब
पल-पल जगह बदलती है
कीर्ण आस भी
चली रसातल
भुवन-भार दे
तानों को
पीत-पर्व के
तिरते बादल
करते चूर
निशानों को
होता मैं दाधीच अस्थियां
लेकिन सहज पिघलती हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय डॉ0 आशुतोष जी, कठिन शब्दों की जगह सरल शब्द रखने का पूरा प्रयास करूंगा क्योंकि इससे संप्रेषण बाधित होता है ऐसा मेरा मानना है, यह कमी दूर करने का जरूर प्रयास करूंगा, आप ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहें, सादर
आदरणीया महिमा जी, आपका हार्दिक आभार
आदरनीय राजेश जी .आपका नवगीत बार बार पढ़ा..बहुत ही अच्छा लगा ..लेकिन यदि कुछ कठिन शब्दों के अर्थ भी साथ में दिए जाए तो पढने के आनंद में चार चाँद लग जाएँ और सीखने के लिए कुछ नए शब्द मिल जाएँ ..आपके इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई ..सादर
..
इक औरत सी तन्हाई को
जब यादें कंधा देती हैं... बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय राजेश जी .. कई बार पढ़ गयी ..बहुत -२ बधाई आपको
आदरणीया प्राची जी, आपका आभार, पर ओबीओ टीम के सदस्यों से केवल तारीफ की अपेक्षा नहीं रहती, कुछ मार्गदर्शन करें तब तो बात बने, सादर
बहुत खूबसूरत नवगीत लिखा है आ० राजेश झा जी
बहुत बहुत बधाई
// आशा है आपका मार्गदर्शन सबके लिए समान रूप से लाभदायक होगा//
अभी तक तो इस अकिंचन का प्रयास ऐसा ही रहा है, आदरणीय.
इसके अलावे भी आपने कुछ देखा अथवा अनुभव किया है क्या ? यदि हाँ, तो आप मेरे असहज समर्थन या अनदखे को अवश्य समक्ष कीजियेगा, ताकि मैं अपने में सार्थक सुधार ला सकूँ. हमने किसी असहजता को सायास समर्थन नहीं दिया है.
सर्वोपरि, यह परस्पर सीखने-सिखाने का ही तो मंच है.
सादर
आदरणीय, आपकी नजर में स्कैनर लगा हुआ है, कितनी भी चतुराई से निकलने का प्रयास करें, पकड़ ही लेते हैं । 'पाउं' मजबूरी में लिखा क्योंकि की-बोर्ड तभी सपोर्ट नहीं कर पाई, शेष आपने बिल्कुल सही पकड़ा है, यथासंभव प्रयास करता हूं कि इनका प्रयोग कम से कम करूं पर कई बार ऑप्शन मेरे सामने नहीं होते तभी ऐसे प्रयोग करने पड़ते हैं । आशा है आपका मार्गदर्शन सबके लिए समान रूप से लाभदायक होगा, सादर
प्रस्तुत नवगीत में प्रयुक्त कतिपय शब्दों की यथासम्भव शुद्ध अक्षरियाँ दी गयी हैं आदरणीय. मेरा इन्हीं शब्दों की ओर इशारा है -
दलानों - दालानों
उष्ण - ऊष्ण
रिफूगर - रफ़ूग़र
पाउं - पाऊँ
दाधीच - दधीचि
सादर
bahut sundar aadarneey ,,,,,,,,,,,,,kya baat hai
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