तमस मंथरा
के निवास में
ईच्छा जब
पग धरती है
**दश रथों की
धीर धुरी भी
विकल हाथ
बस मलती है
ऐसे में
अक्सर ही संयम
दूर भरत सा
रहता है
हो अधीर कुछ
मनस लखन भी
चाप चढ़ाए
फिरता है
बस विवेक तब
राम रूप में
सबको पार
लगाते हैं
ज्ञान तापसी
वेश सिया धर
बढ़ते चल
कह जाते हैं
इतना ही तो
लिखा हुआ है
तुलसी की
चौपाई में
कैसे-कैसे
अर्थ निकाले
कितनों ने
विषपायी ने
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
**(प्राण वायु के दस प्रकार)
Comment
मुझे तो शुरू से आखिरी तक पूरी कविता दमदार लगी!
प्राम्भ से लेकर आखिरी तक कविता ने अमित छाप छोड़ी है,,
अतिशय बधाइयाँ !!!
सौ की सीधी एक बात!!
हार्दिक बधाई!
सच बात कही।
बहुत सुन्दर!
हार्दिक बधाई!
क्या बात है-
आदरणीय-
आभार आपका-
आपने थोड़े से शब्दों में बहुत ही सुंदर ढ़ग से रामचरित मानस के पात्रों का चित्रण किया है.बहुत सुंदर.
सादर
कुंती.
वाह भाई बहुत ही सुन्दर व् सटीक चित्रण किया है आपने//हार्दिक बधाई आपको
वाह वाह ! भाई राजेश कुमार झा साहब, संत तुलसीदास जी की चौपाई में लिखे का निचोड़ निकाल कर रख
दिया आपने अपनी तरह की चार चोपाई में |मंथरा के कारण श्री दशरथ जी की धैर्य धुरी टूटने से लेकर प्रभु राम
की धीरजता का सुन्दर शिल्प और संक्षिप्त में वर्णन सुंदर और गागर में सागर सा लगा | इसके लिए दिल से ढेरों
बधाइयां स्वीकारे करे | शुभम | जय श्री राम
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