देश में फल-फूल रहा, सट्टे का बाजार,
कुछ लोगो के बिक रहे,देखो सब घर बार |
सट्टा गर सरकार का, नियमो में वह वैध
जनता गर सट्टा करे, उसको कहे अवैध |
राजनीति व्यवसाय है,दीमक जैसी चाट
घोटाले करते रहे, कुर्सी के है ठाट |
राजनीति में जो सफल,घोटालो में लिप्त,
इस धंधे में देख लो,नेता सब संलिप्त |
बहुत संपदा पास में, कल तक तो थे रिक्त
नित्य संपदा बढ रही, सुविधाएँ अतिरिक्त |
सुविधाए सब ले रहे, संसद करते ठप्प,
जिस दिन संसद चल पड़े,खूब लड़ाते गप्प |
.
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
दोहों को लाजवाब बताकर मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी
दोहे पसंद करने के लिए हार्दिक आभार शिर सुमित नाथानी जी
आदरणीय लक्ष्मण सर जी वाह बहुत ही सुन्दर दोहे राजनीति पर लाजवाब व्यंग कसा है आपने, मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.
राजनीति पर व्यंगात्मक दोहे पसंद कर मान देने के लिए हार्दिक आभार डॉ प्राची सिंह जी
दोहे पसंद करने के लिए हार्दिक आभार कविता वर्मा जी, एवं श्री डी पी माथुर साहब | सादर
श्री राम शिरोमणि पाठक जी, एवं श्री केवल प्रसाद जी आपका आभार, त्रुटी की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिए धन्य्वाद
sunder vyang ....dohe ke madhyam se
राजनैतिक कारगुजारियों पर यथार्थ दोहों के लिए हार्दिक बधाई आ० लक्ष्मण जी
आदरणीय लडीवाला साहब , अच्छे और सत्य दोहे !
doho ke madhyam se sateek vyang kiya hai aapne ..badhai sweekare ..
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