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संबंध
बेमतलब , बेमानी ...
भाई चारे की तरह
ढोते हैं रिश्तों की लाश को
आफ्नो को
अपने ही देते कंधे
चलते जाते हैं
नाकों मे फैलती
अपनों की सड़ांध
आसान नहीं है चलना
और फिर
जला आते है अपनों की लाश को
अपने ही , मगर
ढ़ोना तो पड़ता है
छाँव की तलाश मे
रिश्तों की आस मे
संबंध
बेमानी , बेमतलब
भाई चारे की तरह ...

"मालिक व अप्रकाशित"

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Comment by D P Mathur on July 12, 2013 at 8:01am

आदरणीय श्रीवास्तव साहब , रिश्ते बेमानी होते है सत्य है ,
परन्तु इनके बिना जीवन निरस हो जाता है यह भी उतना
ही सत्य है ,
आपने रिश्तों की सच्चाई को सुन्दर शब्दों में पिरोया इसकी बधाई स्वीकारें !

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