शिखर को छूने की चाहत में
जमीन को भूल गया हूँ
झूठ को जीते जीते
सच को भूल गया हूँ...
खुद्दार हैं वो जो
मर के भी जीते हैं
बेबसी हमारी हम
जी के भी मरते हैं
सच है चराग जलाने से
अंधेरा मिटेगा
मगर वो आचरण कहाँ से आए
जिससे पाप मिटेगा ....
कतरा कतरा जमा करो
समंदर बनेगा
अपना हृदय विशाल करो
जिसमे वो बहेगा ....
आंखे बंद करने से अंधेरा
होगा रात नहीं होती
भगवान के घर देर है
अंधेर नहीं होती ....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय प्राची जी, लक्ष्मण जी, सौरभ पांडे जी एवं श्याम नारायण वर्मा जी .... उत्साह वर्धन के लिए.... आशा करता हूँ कि आपका आशीर्वचन बना रहेगा ....
प्रखर सशक्त कथ्य समृद्ध अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आ० आमोद श्रीवास्तव जी
खुद्दार हैं वो जो
मर के भी जीते हैं
बेबसी हमारी हम
जी के भी मरते हैं --वाह ! बहुत खूब कहा है
आंखे बंद करने से अंधेरा
होगा रात नहीं होती
भगवान के घर देर है
अंधेर नहीं होती ..--------बिलकुल यथार्थ कहा है | पूरी रचना ही बहुत सुन्दर | हार्दिक बधाई भाई आमोद जी
भाई आमोद जी, आपकी प्रस्तुत रचना का तथ्य गंभीर तथा सनातन है. बधाई स्वीकारें
आपकी अन्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी.
शुभम्
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................."
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