जरूरत है प्रयास की
कोशिश की
कंक्रीट का जंगल
और ठसाठस सड़के हैं
नीला अंबर धूल धूसरित है
उहापहो की स्थिति है
इतने विशाल शहर में
हम और तुम निहायत अकेले हैं
जीवन का उद्देश्य
केवल जीवन यापन है
नित्य क्रम की नियति को
समझ लिया खुशी का समागम
खोखली हंसी
छिछला प्यार
दिखावे के लिए मिलना जुलना
केवल सतही संतुष्टि है
झाँक कर देखा अंदर
तो अजीब तरह का खोखलापन है
गाहे बगाहे मैं भी हिस्सा हूँ इसी भीड़ का
होंठो पे मुस्कान
आँखों मे खुशी का भ्रम है
अपने अन्तर्मन में
अनगिनत प्रश्नों का सावन है
क्यूँ हम इसके बाहर
आने का रास्ता नहीं ढूंढते
क्यूँ हम झूठ मे ही रहना
पसंद करते हैं
क्या भ्रम है
क्या लोभ है
पूछो स्वयं से
अपने आपसे
ये प्रश्न उठाओ.....
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
dhanyawad Saurabh Pandey jee.. utsahvardhan ke liye..
रचना प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद ... प्रयासरत रहें भाईजी.. .
शुभम्
आदरनिया प्राची जी .... मैं आपके कथन से पूर्णतः सहमत हूँ... आभार ...
आदरणीय रविकर जी बहुत बहुत आभार ... धन्यवाद ...
संवेदनहीन हुए कंकरीट के आलीशान जंगलों में जीता आदमी वास्तव में अंदर से खोखला ही है... स्वयं से इसपर प्रश्न करने और उत्तर खोजने को प्रेरित करती अभिव्यक्ति...सादर बधाई इस रचना पर
रचना को और रोचक व प्रभावशाली बनाया जा सकता था..कथ्य जन मानस से जुड़ा है फिर भी कहीं कहीं सपाटबयानी सी प्रतीत हो रही है.
शुभकामनाएँ
खला खोखलापन हमें, भ्रमित ख़ुशी का दास |
प्रश्न उठाओ स्वयं से, कुछ तो करो प्रयास ||
बहुत बढ़िया है आदरणीय-
आभार आपका-
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