साँसें जब करने लगीं, साँसों से संवाद
जुबाँ समझ पाई तभी, गर्म हवा का स्वाद
हँसी तुम्हारी, क्रीम सी, मलता हूँ दिन रात
अब क्या कर लेंगे भला, धूप, ठंढ, बरसात
आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते साथ
पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े हाथ
सिहरें, तपें, पसीजकर, मिल जाएँ जब गात
त्वचा त्वचा से तब कहे, अपने दिल की बात
छिटकी गोरे गाल से, जब गर्मी की धूप
सारा अम्बर जल उठा, सूरज ढूँढे कूप
प्रिंटर तेरे रूप का, मन का पृष्ठ सुधार
छाप रहा है रात दिन, प्यार, प्यार, बस प्यार
तपता तन छूकर उड़ीं, वर्षा बूँद अनेक
अजरज से सब देखते, भीगा सूरज एक
भीतर है कड़वा नशा, बाहर चमचम रूप
बोतल दारू की लगे, तेरा ही प्रारूप
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(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया Ashok Kumar Raktale जी
धन्यवाद Dr Lalit Kumar Singh जी
बहुत बहुत शुक्रिया Rajesh Kumar Jha जी
आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते साथ
पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े हाथ
bhot hi umda upma di hai pati parmeshwar ko
आदरणीय धमेन्द्र जी आपका लेखन एक मिसाल है। आपको पढ़ना सदैव तोषदायी व सुखद रहता है। इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई।
हम हिन्दी भाषा भाषी हिज्जों को लेकर कितने लापरवाह हैं यह चर्चा उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। लोग लेखन करते हैं परन्तु लिपि के अक्षरों का सही ज्ञान नहीं रखते। बस भ्रान्तियों को सीढ़ी बनाकर आगे चलते जाते हैं।
आपने जो मार्गदर्शन दिया है वह बहुत से गुमराह लोगों को रास्ता दिखाएगा।
सादर!
धरम करम पर जोर दें, नीति-रीति रख ताक
रह-रह पिनक उभारता, मौसम भी बेबाक .. ... . .
शृंगार रस के दोहों पर दिल से वाह-वाह, आदरणीय धर्मेन्द्र भाई.. !
आदरणीया vandana tiwari जी, उपरोक्त दोनों शब्द एक ही हैं और सही हैं। केवल लिखने के भिन्न तरीकों के कारण अलग दिखाई पड़ते हैं। पहले वाला शब्द यूनिकोड में नहीं लिखा जा सकता क्योंकि ये कैरेक्टर यूनिकोड में मैप्ड ही नहीं है। तो लिखने का दूसरा तरीका ही अपनाना पड़ेगा।
श्रृंगार या श्रंगार इत्यादि गलत हैं।
श्रंगार रस में वास्तविकता पर सीधी चोट करते हुए सुंदर दोहे के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय धर्मेन्द्र जी .....
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