धरती तो आधार है, जा न सके उस पार
जन्म,मरण अरु परण का,धरती ही आधार|
पञ्च तत्व से जन्म ले,पाय धरा की गोद
हरेभरे उपवन खिले, प्राणी करे प्रमोद |
धरती गगन जहां मिले,लगे नीर की झील
हिरन दौड़ते खोजने, निकले मीलो मील |
हीरे मोती कुछ नहीं, जितनी धरा अमूल्य,
सभी मिले भूगर्भ में, बिन माटी सब शून्य|
निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,
साँसों की डोरी थमे, जाय संपदा हीन |
(मौलिक व् अप्रकाशित)
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment
सादर आभार आपका श्री जितेन्द्र "जीत" जी
"आदरणीय..लक्ष्मण जी, सुंदर दोहे प्रस्तुति पर..हार्दिक बधाई
बिलकुल सही कहा आपने श्री विजय मिश्र जी, जीवन का सत्य यही है | रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार -
शास्वत जीवन सार ये, इसका रखना ध्यान
भारत माँ की गोद में, निकले अपने प्राण
दोहे पर आपकी पुष्टि से प्रसन्नता हुई आदरणीय राज नवादवी साहब
दोहे सुन्दर बताकर सराहने हेतु आपका आभार भाई श्री ब्रजेश नीरज जी
दोहों के मर्म तक पहुँच सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी
निर्धन या धनवान हो, दो गज मिले जमीन,
साँसों की डोरी थमे, जाय संपदा हीन |
जीवन की पराकाष्ठा! बहुत खूब लक्ष्मण जी!
आदरणीय आपको हार्दिक बधाई इस सुन्दर दोहावली पर!
लक्ष्मण जी आपने तो जीवन का पूरा सार कह दिया.
सादर
कुंती
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