!!! जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं !!!
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लहर-लहर में कशिश है, मचल के देखते हैं।
हवा हवाई सफर से, बहल के देखते है।।
नदी कहे कि सितारें भरी हैं रेत हसीं।
लहर चमक के किनारे उछल के देखते हैं।।
हवा दिशा से कहे कामना सकल शुभ हो।
मगर तुफान कहे तो संभल के देखते हैं।।
ये अग्नि-वारि गगन में, धरा भुलाए नफरत।
प्रलय से कष्ट मिले हैं, संभल के देखते हैं।।
गगन से बरसे है पत्थर, मनुज दबे बहकर।
धरा ओढ़ाए है चादर, सजल के देखते हैं।।
दुआ करें न बने लड़कियां तवायफ वो,
हजार बार सुनीता गजल के देखते हैं।।
ये कल्पना है उड़ाती गगन में गम को।
गगन से पार सभी निकल के देखते हैं।।
ये मांग पर मेरे सिन्दूर किसने डाला यूं।
अमर सुहाग बनी दृग सजल के देखते हैं।।
सुनो कहो कि जमाना मचल न जाय कही।
अभी कुछ और करिश्में गजल के देखते हैं।।
दुआ दवा है कि ‘सत्यम‘ बसर यहां जैसे।
जमीं-फलक में हैं तारें, निकल के देखते हैं।।
कभी-कभी मेरे दिल में सवाल उठता है,
दवा-हकीम नही वो खरल के देखते हैं।।
के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत खूब
आ0 परमार भाई जी, गजल के विषय में सीख रहा हूं। पहले मैंने ’’दुआ करें न बने लड़कियां तवायफ सी’’.......ही लिखा था। किन्तु न जाने क्यूं बात अखर गई। हमें दुआ करनी चाहिए कि लड़कियों की जिंदगी नर्क और नर्क से बद्तर न बने....तवायफ की जिंदगी नर्क या नर्क से बद्तर ही होती है.......’वो’.....वो कौन है? अथवा वे कौन हैं? जो तवायफ बनने/बनाने जैसी स्थिति उत्पन्न करते हैं। सादर,
दुआ करें न बने लड़कियां तवायफ वो,
हजार बार सुनीता गजल के देखते हैं।।
Iskaa matlab bhi samjhaye
Bhot acchaa or sarthak prayas
आ0 विजय सर जी, आपने सही कहा है। काफिया की पुनरावृत्ति नहीं होना चाहिए। मैं ध्यान नहीं दे पाया। आपके स्नेह और सुझाव के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर,
आ0 केतन भाई जी, आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
वाह! केवल प्रसाद जी
सादर
आ0 बृजेश भाई जी, आपका सस्नेह हार्दिक स्वागत है। आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
आ0 कुन्ती मैम जी, आपका अपार स्नेह व सराहना पाकर मेरा प्रयास सार्थक हो गया। आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार। सादर,
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