जब सोचने का नज़रिया
बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं...
काफिले के संग
चल निकलो तो बात अलग,
वर्ना परछाईं भी अक्सर
साथ छोड़ जाया करती है...
वो लोग अलग होते हैं
जो डूब के पार निकलते हैं,
हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती है...
स्वार्थी की कोई ज़ात नहीं
जानवरों सा जीवन उसका,
इंसान को तो चुल्लू भर पानी में भी
मौत आ जाया करती है...
ऊपर वाले ने भी
खेल अजीब खेला है,
जो दुनिया उजाड़े किसी की
किस्मत उसी को मिल जाया करती है,
'पियू' और क्या लिखे उसके सामने
प्यार करने वालों की तो अक्सर
लकीरें भी धोखा दे जाया करती हैं...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
.......प्रियंका ''पियू ''
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया अजय जी ....खूब कहा अपने ...आभार सर
आदरणीया ,सादर अभिवादन
बड़ी सुंदर रचना सार्थक सन्देश युक्त ...
"हौसलों से तो बिन पंख भी
ऊँची उडान भरी जाया करती है..."वाह ...वाह ..वाह .
kisi शायर ने लिखा हैं
"अगर चिंगारी है , तुझमें , तो भड़क ! गर फूल है , तो खिल ! महक !
हजारों तरह के हसरतो-जनून , तेरे रंग -ए -दिल में हैं ; उभार ! उनको ".सादर आभार |
नज़्म के बारे मे तो वीनस केसरी जी ही बता सकते हैं
पसंदगी का बहुत बहुत आभार जीतेन्द्र जी ....
आदरणीय गीतिका जी, सही कहा आपने 'नज्म' के बारे में अगर नियमों की जानकारी मिले तो हम जैसे नवोदित रचनाकारों के लिये खुशी की बात होगी....दिल से शुक्रगुजार हूं आपकी इस स्नेह एवं हौसलाअफजाई के लिये.....!!! सादर !!!
जब सोचने का नज़रिया
"बदल जाये तो
राहें भटक जाया करती हैं,
मंजिलें तब दूर कहीं
खो जाया करती हैं.."".
आदरणीया..प्रियंका जी..उम्दा नज्म पर हार्दिक बधाई
आदरणीय बृजेश नीरज जी, मैं भी सीखने का ही प्रयास कर रही हूं, आप जैसे गुणी जनों से.....मुझे भी अच्छा लगा आपसे प्राथमिक जानकारी पाकर....भविष्य में कोशिश करूंगी कि अब रचना के लिये उसका अपना शीर्षक दूं....वैसे अब जाकर मन में संतोष हुआ कि रचना आपको 'बहुत ही सुन्दर' लगी.....हृदय से आभार । सादर!
आदरणीय बृजेश जी!
कभी आपको 'नज्म' विधा के बारे में जानकारी मिले तो मुझे अवश्य ही बताइयेगा, मै भी कभी नियमसंगत नज्म की रचना करने का सुअवसर चाहूंगी!!
मन के हालातों को उकेरती सुंदर नज्म पर दाद कुबुलें आदरणीया प्रियंका पियू सिंह जी!!
सादर !!
आदरणीया प्रियंका जी मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार! जी जरूर, किसी जानकार से इस विधा के बारे में अधिक जानकारी लेने का प्रयास करूंगा। आपसे जो प्राथमिक जानकारी मिली है वह बहुत उपयोगी है।
आपसे एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि उर्दू के कुछ शब्दों के प्रयोग से न तो कोई रचना नज्म हो जाती है और न ही हिन्दी के कुछ शब्दों के प्रयोग से वह कविता हो जाती है। बेहतर यही होता है कि रचना को उसका अपना एक शीर्षक दिया जाए।
आपकी रचना बहुत ही सुन्दर है। आपको हार्दिक बधाई।
सादर!
आदरणीय बृजेश नीरज जी, बहुत ज्यादा जानकारी तो मुझे भी नहीं है.....मैं सिर्फ इतना ही जानती हूं कि कविता को ही उर्दू में 'नज्म' कहते हैं.....अब चूंकि मेरी ये रचना मुक्त छंद कविता है और इसमें मैंने कुछ उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया है तो सोचा शीर्षक 'एक नज्म' दे दूं.....बाकी मैं अभी सीखने के दौर में हूं इसलिये इससे ज्यादा इस बारें में नहीं बता पाऊंगी.....जैसा कि आपने कहा कि इस विधा के बारे में आपको भी कोई जानकारी नहीं है तो बेहतर होगा कि आप किसी विद्वान से संपर्क करें....धन्यवाद !!!!
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