बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222
परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,
अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,
दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,
कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,
हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,
गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,
नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,
कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,
उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
Comment
आदरणीया कुंती जी ग़ज़ल की सराहना हेतु हार्दिक आभार आपका.
कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है, वाह!!
सभी शेअर उम्दा है !!
गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,
Karamati sher mitr badhai sweekare
कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,....
वाह बहुत खूब अरुण जी..बधाई स्वीकारें.
waah arun bahut bahut badhayi
,aap to vaise hi mahir ho gaye ho gajal ke
"हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,
गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,"...वाह ! बहुत खूब..आदरणीय. अरुण जी ,उम्दा गज़ल पर दाद कुबूल कीजिये
प्रिय अनुज अरुण शर्मा जी
छोटी बह्र पर बहुत खूबसूरत गज़ल.....हर शेर स्वतः ही हामी भरवाता हुआ है , वाह
हार्दिक बधाई
अहहा! वाह! आप उस्ताद हो गए! बधाई आपको!
आदरणीय अरुण जी गजल तो बहुत बढ़िया है , किन्तु मुझे बहर के विषय मे थोड़ा जानकारी दें । मै इस विषय मे कोरा कागज़ जैसी हूँ ।
बहुत सुंदर गजल.....
कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,
उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है.
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