मैं लिखा करता हूँ
भाव की ध्वनियों को;
उतारता हूँ
नए शब्दों में
नए रूपों में।
रस, छंद, अलंकार
तुक, अतुक
सब समाहित हो जाते हैं
अनायास।
ये ध्वनि के गुण हैं;
शब्द के श्रंगार।
इन्हें खोजने नहीं जाता।
मुझे तो खोज है
उस सत्य की
जिसके कारण
मैं सब कुछ होते हुए भी
कुछ नहीं
और कुछ न होते हुए भी
सब कुछ हो जाता हूँ।
शायद किसी दिन
किसी अक्षर
किसी शब्द के पीछे
छिपे अर्थ में से
सहसा प्रकट हो जाए
वह सत्य
और मेरी आंख का
मोतियाबिन्द खत्म हो जाए।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
'मैं लिखा करता हूँ
भाव की ध्वनियों को;'
बहुत खूब!
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका आभार!
आदरणीय..बृजेश जी, गहरी भावनात्मक रचना पर हार्दिक बधाई..
आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! आपकी विस्तृत टिप्पणी ने मेरे अनकहे को भी रूप दे दिया।
आपका कहना सत्य है कि नकारात्मक शब्द नकारात्मक ऊर्जा ही देते हैं। आपका सुझाव शिरोधार्य। उपयुक्त शब्द की तलाश करता हूं।
वैसे मैंने मोतियाबिन्द शब्द जानबूझकर ही प्रयोग किया था। मोतियाबिन्द वह अवस्था जिसमें सामने का स्पष्ट भी अस्पष्ट ही दिखता है। सब कुछ धुंधला सा। जो सहज स्वीकार्य होना चाहिए वह सत्य भी धुंधलके की अस्पष्टता के कारण समझ ही नहीं आता। उस अवस्था में रहते हुए सत्य की तलाश है कि कभी समझ आ जाए तो यह धुंधलका छंट सके।
यह मेरी सोच थी रचना लिखते समय जिसके कारण यह शब्द मैंने प्रयोग किया। पुनः सोचता हूं कि इसके स्थान पर क्या उपयुक्त शब्द या वाक्यांश प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
आपका एक बार फिर हार्दिक आभार!
आदरणीय राजेश जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश जी
इस अभिव्यक्ति की गहनता कर क्या कहूँ बस निःशब्द हूँ
भाव से उत्पन्न ध्वनि स्पंदन को शब्द देने के लिए वाह्य शृंगार की ज़रूरत नहीं होती, वह भाव का ही गुण बन अनायास आ जाता है..उसमें समाहित ही होता है ...
अक्षर के पीछे के सत्य को खोजना, भाव स्पंदन की गहन अनुभूति में शांत होते हृदय के समक्ष ऐसे सत्य 'आप्त वाक्य' के रूप में सहसा ही आ प्रकट होते हैं...नमन इन उच्च भावों के लिए
अब रचना के शिल्प पर : पूरी प्रस्तुति बहुत सुन्दर, सकारात्मक..लेकिन अंत में मोतियाबिंद शब्द कुछ रुचा नहीं, यहाँ तो पट खुलने चाहिये थे, या सत्य के आलोक से आँखे खुलनी चाहिये थीं.... मैं आध्यात्मिक दर्शन युक्त प्रस्तुतियों में नकारात्मक शब्दों के प्रयोग से बचती हूँ, और यहाँ तो बात अक्षरों की ध्वनियों की हो रही है, फिर नकारात्मक शब्द की ध्वनि और स्पंदन को जगह क्यों दें .
(ये मेरी निजी सोच है)..शायद सहमत हों पायें
इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
सादर.
बहुत सुंदर रचना हुई है आदरणी, सादर
आदरणीय श्याम नारायण जी आपका आभार!
बहुत सुन्दर ,ढेरों बधाई .................
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