शैक्षिक व्यस्तताओं तथा गाँव यात्रा के कारण काफी समय तक ओबीओ से दूर रहना पड़ा ! इतने दिनों में काफी याद आया अपना ये ओबीओ परिवार ! लगभग पाँच महीने बाद आज पुनः ओबीओ पर लौटा हूँ ! सर्वप्रथम सभी आदरणीय मित्रों को नमस्कार, तत्पश्चात ये एक छोटी-सी गज़ल नज़र कर रहा हू ! इसके गुणों-दोषों पर प्रकाश डालकर, मुझ अकिंचन को कृतार्थ करें ! सादर आभार !
अरकान : २१२२/२१२२
जिन्दगी की क्या कहानी !
गर नही आँखों में पानी !
भ्रष्टता घर-घर की दौलत –
भीतियों की ये बयानी !
हो मुआफी गलतियों पर,
ये जवानी है दिवानी !
इश्क को इज्ज़त दिया वो,
जो है उसपे बेज़ुबानी !
दुश्मनी ना, यार हों सब,
और दौलत क्या कमानी !
हेम-से ख्वाबों की बस्ती –
धूल-सी ये जिंदगानी !
-पियुष द्विवेदी भारत
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
धन्यवाद, आदरणीय विजय भाई जी !
'हेम' है केतन भाई जी ! हेम मने सोना होता है !
हेम है या हम है कृपया बताये ताकि मेरा प्रश्न हल हो जाये
हेम is shabd ka kya matlab hota hai krippya samjhane kaa kasht kare
धन्यवाद, आदरणीय सौरभ जी !
छोटी बह्र पर सीधी बात करती एक सुन्दर सी ग़ज़ल.
आदरणीया राजेश कुमारीजी की सलाह भी पसन्द आयी.
tanu thadani तनु जी आप से आग्रह है यहाँ सिर्फ टिपण्णी करें कोई लिंक पोस्ट ना करें|
पियूष द्विवेदी जी छोटी बहर पर बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है सभी अशआर अच्छे लगे
भ्रष्टता घर-घर की दौलत –
भीतियों की ये बयानी !---ये शेर बहुत पसंद आया
दुश्मनी ना, यार हों सब,-----इसको ऐसे लिखें तो कैसा लगे--- दुश्मनी ना हो किसी से
और दौलत क्या कमानी !
इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये
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