For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1-
शाश्वत प्रेम सदैव है, सृष्टि आदि अनुमन्य।
यह ईश्वर का अंग है, करके सब हों धन्य॥
करके सब हो धन्य, जगत का सार यही है।
वश में होते ईश, प्रेम का काट नहीं है॥
कबिरा मीरा सूर, शशी आदिक इसमें रत।
नहीं वासना युक्त, प्रेम तो सत्व शाश्वत॥

2-
बहती गंगा प्रेम यह, बांध सका नहिं कोय।
अन्हवाये तन प्रेम में, हर मन निर्मल होय॥
हर मन निर्मल होय, कलुष अंतर का मिटता।
नहीं वासना युक्त, प्रेम वश ईश्वर मिलता॥
निकल अचल हिमवान, सिन्धु चंचल में मिलती।
गंगा प्रेम प्रतीक, निरंतर कलकल बहती॥

मौलिक व अप्रकाशित
(संशोधित)

Views: 842

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 2:32pm

sadar

Comment by Ketan Parmar on July 24, 2013 at 2:32pm

प्रिय विन्ध्येश्वरी जी

accha or sarthak prayas Dr. Prachi Singh ji se main bhi sehmat hoo


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 11:49am

प्रिय विन्ध्येश्वरी जी 

प्रीत के उत्तम भावों को शब्द मिले हैं इस अभिव्यक्ति..जिसके लिए बधाई 

कहीं कहीं प्रवाह कुछ बाधित महसूस हुआ..

शुभकामनाएँ 

Comment by shashi purwar on July 23, 2013 at 10:50pm

acchi kundaliyan saurabh ji se sahamat hoon mai ,parantu kundaliyan bahut acchi lagi ,badhai aapko

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 7:01pm

adarniy vinay bhai ji , bahut sundarta ke sath rachi gai kundaliya ke liye badhai .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2013 at 2:29pm

कुण्डलिया छंद केलिए हार्दिक धन्यवाद विंध्येश्वरी भाई.

थोड़ा और समय यदि दिया गया होता तो पद और निखरते. जैसे -

शाश्वत प्रेम सदैव था, सदा रहा अनुमन्य.........      शाश्वत के साथ था उचित नहीं, भाई
यह ईश्वर का भाव है, जो डूबे वह धन्य॥
जो डूबे वह धन्य, जगत का सार यही है।.......     ..   सार यही है.. ?
वश में रहते ईश, प्रेम की काट नहीं है॥
कबिरा मीरा सूर, शशी सब इसमें मत।..............    सही शब्द मत्त है न ?
नहीं वासना युक्त, प्रेम का सत्व शाश्वत

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on July 23, 2013 at 1:01pm

पहला कुण्डलिया बढियां है, भाई जी ! दूसरे कुण्डलिया के रोले के द्वितीय चरण पर एक बार पुनः दृष्टिपात करें ! 'परम सत्य को जानना' यहाँ प्रवाह बाधित लग रहा है ! बाकी, बधाई !

Comment by विजय मिश्र on July 23, 2013 at 12:59pm
प्राणी और परमात्मा के मध्य प्रेम , शाश्वत सत्य है ,रचना ,भाव और ध्येय सब अतिसुन्दर और प्रभावोत्पादक भी .आभार ग्रहण करें त्रिपाठीजी .
Comment by Shyam Narain Verma on July 23, 2013 at 11:11am
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by aman kumar on July 23, 2013 at 8:30am

सुंदर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service