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sadar
प्रिय विन्ध्येश्वरी जी
accha or sarthak prayas Dr. Prachi Singh ji se main bhi sehmat hoo
प्रिय विन्ध्येश्वरी जी
प्रीत के उत्तम भावों को शब्द मिले हैं इस अभिव्यक्ति..जिसके लिए बधाई
कहीं कहीं प्रवाह कुछ बाधित महसूस हुआ..
शुभकामनाएँ
acchi kundaliyan saurabh ji se sahamat hoon mai ,parantu kundaliyan bahut acchi lagi ,badhai aapko
adarniy vinay bhai ji , bahut sundarta ke sath rachi gai kundaliya ke liye badhai .
कुण्डलिया छंद केलिए हार्दिक धन्यवाद विंध्येश्वरी भाई.
थोड़ा और समय यदि दिया गया होता तो पद और निखरते. जैसे -
शाश्वत प्रेम सदैव था, सदा रहा अनुमन्य......... शाश्वत के साथ था उचित नहीं, भाई
यह ईश्वर का भाव है, जो डूबे वह धन्य॥
जो डूबे वह धन्य, जगत का सार यही है।....... .. सार यही है.. ?
वश में रहते ईश, प्रेम की काट नहीं है॥
कबिरा मीरा सूर, शशी सब इसमें मत।.............. सही शब्द मत्त है न ?
नहीं वासना युक्त, प्रेम का सत्व शाश्वत
पहला कुण्डलिया बढियां है, भाई जी ! दूसरे कुण्डलिया के रोले के द्वितीय चरण पर एक बार पुनः दृष्टिपात करें ! 'परम सत्य को जानना' यहाँ प्रवाह बाधित लग रहा है ! बाकी, बधाई !
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
सुंदर !
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