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दोहे ( प्रथम प्रयास )

दोहे ( प्रथम प्रयास ) 

दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।

चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥

प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।

ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥

जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।

जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥

छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।

जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥

बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।          

बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥

महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।

धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥  

दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।

जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥ 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 1:12pm

आ0 जितेन्द्र जी .. दोहे आप को पसन्द आये उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया आभार .... धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 1:11pm

आ0 अनिल जी...  आभार शुक्रिया ... 

Comment by Anil chaudhary "sameer" on July 31, 2013 at 12:32pm

बहुत बढि़या, आदरणीय बसंत जी,
माॅ-बाप के लिये लिखे दोहे और उनमें दिया हुआ संदेश वाकई काबिले तारीफ है।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 31, 2013 at 11:29am

आदरणीय बसंत जी, बहुत ही सुन्दर शब्दों से पिरोई , दोहों की माला पर, हार्दिक बधाई

Comment by बसंत नेमा on July 31, 2013 at 10:14am

आदरणीया प्राची जी , सादर वन्दन  ...क्षमा बोल कर मुझे शर्मिन्दा न करे ।मुझसे इसकी खुशी है की  आप का समय मिला  और मेरी कमियो को आप ने इंगित किया ... ... जो कमिया रह गई है उनको अगले प्रयास मे पूरा करने की कोशिश करुंगा ...आप  गुणीजनो का अशीष मिलता रहे ...इसी आशा के  साथ .... आप का बहुत बहुत आभार धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 31, 2013 at 9:47am

आ० बसन्त नेमा जी 

सबसे पहले तो आपकी दोहावली तक विलम्ब से पहुँचने के लिए क्षमा चाहूंगी...

अब दोहा के शिल्प में जहाँ कमियाँ रह गयी हैं उनको इंगित करती हूँ..

दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।............सम चरण में मात्रा १० ही रह गयी है , कथ्य भी अस्पष्ट है 

चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥

प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।

ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥...............असीम को आसीम लिखना गलत है 

जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।..........जाएँ , आएँ.... को २२ गिना जाएगा २१ नहीं 

जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥

छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।......विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है, और सम चरणों का अंत २२ से 

जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥

बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।.........रूप को रुप लिखा जाना गलत है.  और विषम चरण का नत १२ या १११ से होना चाहिये ...आपने यहां २१ से किया है         

बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥

महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।.....दोहा विधा में विषम चरण का आरम्भ कभी जगण (१२१) से नहीं होता ..विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है..................सम चरण में तू को तु किया जाना भी सही नहीं है 

धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥  

दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।...........सम व विषम चरणों के अंत विधानुरूप नहीं हैं 

जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥ 

दोहावली पर सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.

छंद व्इधान पर पुनः ध्यान दें और दोहे लिखने के बाद विधा अनुपालन को पुनः जानत कर संतुष्ट होते चलें ...दोहे स्वतः ही सधते जायेंगे 

शुभकामनाएँ 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:40am

आ0 विजय जी तहे दिल से शुक्रिया आप का ..आप  ने दोहो को अपनासमय  दिया ....धन्यवाद 

Comment by बसंत नेमा on July 27, 2013 at 10:39am

आ0 राम जी और मै आप से सहमत हू ..... बहुत बहुत शुक्रिया .....

Comment by ram shiromani pathak on July 26, 2013 at 9:09pm

आदरणीय लक्ष्मन सर से सहमत हूँ //सादर 

Comment by विजय मिश्र on July 26, 2013 at 12:43pm
रचना का सार तो संसार से सुन्दर है ,सकल समाज को हितासाध्य सन्देश दिया है आपने.अतिसुन्दर बसंतजी ,बधाई.

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