दोहे ( प्रथम प्रयास )
दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।
चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥
प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।
ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥
जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।
जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥
छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।
जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥
बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।
बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥
महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।
धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥
दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।
जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आ0 जितेन्द्र जी .. दोहे आप को पसन्द आये उसके लिये बहुत बहुत शुक्रिया आभार .... धन्यवाद
आ0 अनिल जी... आभार शुक्रिया ...
बहुत बढि़या, आदरणीय बसंत जी,
माॅ-बाप के लिये लिखे दोहे और उनमें दिया हुआ संदेश वाकई काबिले तारीफ है।
आदरणीय बसंत जी, बहुत ही सुन्दर शब्दों से पिरोई , दोहों की माला पर, हार्दिक बधाई
आदरणीया प्राची जी , सादर वन्दन ...क्षमा बोल कर मुझे शर्मिन्दा न करे ।मुझसे इसकी खुशी है की आप का समय मिला और मेरी कमियो को आप ने इंगित किया ... ... जो कमिया रह गई है उनको अगले प्रयास मे पूरा करने की कोशिश करुंगा ...आप गुणीजनो का अशीष मिलता रहे ...इसी आशा के साथ .... आप का बहुत बहुत आभार धन्यवाद .
आ० बसन्त नेमा जी
सबसे पहले तो आपकी दोहावली तक विलम्ब से पहुँचने के लिए क्षमा चाहूंगी...
अब दोहा के शिल्प में जहाँ कमियाँ रह गयी हैं उनको इंगित करती हूँ..
दर दर भटके पूजता, तू महंत फकीर ।............सम चरण में मात्रा १० ही रह गयी है , कथ्य भी अस्पष्ट है
चरण छुये माँ-बाप के, बनती है तकदीर ॥ 1 ॥
प्यासे को पानी मिले, भूखा जाये जीम ।
ऐसे घर मे लक्ष्मी, कृपा करे आसीम ॥ 2 ॥...............असीम को आसीम लिखना गलत है
जर जोरु दोनो मिले, बिछ्डे पुन मिल जाँए ।..........जाएँ , आएँ.... को २२ गिना जाएगा २१ नहीं
जग छोड माँ-बाप गये, फिर वापस न आँए ॥ 3॥
छ्प्पन भोग तेरे धरे, देव प्रसन्न न होए ।......विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है, और सम चरणों का अंत २२ से
जब घर पे माता पिता, भूखे बैठे होए ॥4॥
बाल रुप धर तीन देव, करते अमृतपान ।.........रूप को रुप लिखा जाना गलत है. और विषम चरण का नत १२ या १११ से होना चाहिये ...आपने यहां २१ से किया है
बलिहारी माँ-बाप की, देव करे गुणगान ॥5 ॥
महंत कहे बसन्त कहे, बात ये तु भी मान ।.....दोहा विधा में विषम चरण का आरम्भ कभी जगण (१२१) से नहीं होता ..विषम चरण की मात्रा १४ हो रही है..................सम चरण में तू को तु किया जाना भी सही नहीं है
धरती पे माँ-बाप मे, होते है भगवान ॥6 ॥
दर दर भटके माँ-बाप, और तु महल बनाए ।...........सम व विषम चरणों के अंत विधानुरूप नहीं हैं
जिस भवन माँ-बाप नही, घर वो ना कहलाए ।। 7 ॥
दोहावली पर सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई.
छंद व्इधान पर पुनः ध्यान दें और दोहे लिखने के बाद विधा अनुपालन को पुनः जानत कर संतुष्ट होते चलें ...दोहे स्वतः ही सधते जायेंगे
शुभकामनाएँ
आ0 विजय जी तहे दिल से शुक्रिया आप का ..आप ने दोहो को अपनासमय दिया ....धन्यवाद
आ0 राम जी और मै आप से सहमत हू ..... बहुत बहुत शुक्रिया .....
आदरणीय लक्ष्मन सर से सहमत हूँ //सादर
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