भुलाए पर, यहाँ तक भी न कोई ।
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मुझे हर आइने ने झूठ बोला ,
निभाये, पर यहाँ तक भी न कोई ।
मुहब्बत से भरोसा उठ गया है ,
सताए, पर यहाँ तक भी न कोई ।
bahut hi khoobsurat
आदरणीय अभिनव जी बहुत ही बढ़िया गजल के लिए बधाई ।
दुआओं की तिजारत हो रही है
हमें उनसे मुहब्बत हो रही है
khoob surat sir ji kyaa kahne
बहुत सुंदर गजल आदरणिय.
आदरणीय अरुण अभिनव जी,
ये गज़ल भी लाजवाब हुई है
बहुत बहुत बधाई
वाह वाह वाह !!!!! बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ में क्या कमाल की ग़ज़ल कही है आदरणीय अरुण भाई जी, इतनी ज़बरदस्त रदीफ़ को कितनी सरलता से निभाया है - कमाल, आनंद आ गया. मेरी दिली बधाई स्वीकारे करें.
दो बेटों में बंटें माँ बाप बिखरे ,
लड़ाए पर यहाँ तक भी न कोई ।
bahut hi sunder or mukammal sher or kaafi achi kahi aapne ye ghazal
badhai sweekare sir ji
ग़ज़ब का रदीफ़ लिया है आपने भाई !! वाह !!!
पूरी ग़ज़ल मन को ख़ुराक़ दे गयी. यही आपसे अपेक्षित है. दिल से दाद कुबूल करें.
भाई आशीष नैथानी जी के कहे से मैं भी सहमत हूँ. गालियाँ का गलियां हो जाना टंकण भूल ही है.
शुभम्
वाह वाह क्या कहने !!!
मुझे हर आइने ने झूठ बोला ,
निभाये, पर यहाँ तक भी न कोई ।
दुआओं की तिजारत हो रही है
/* फिर औलादें ही अपनी गलियां दे, */
गालियाँ शायद गलियां हो गया है...
मजा आ गया...
इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अभिनव जी !!!
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