कभी न आएँगे तेरे दर पे
कि तेरे बिना
जीना मंजूर है हमें
कभी न ताकेंगे तेरे राह
कि तेरे बिना
जीना मंजूर है हमें।
एक आशियाना मिला था,
एक फूल खिला था,
जो मुरझा गया समय से पहले
उस फूल को लेकर
अब मैं कहाँ जाऊँ।
जिसमे सजानी थी
बचपन की यादें,
समेटनी थी कुछ खुशियाँ
तेरे साथ उन खुशियों को
ढूंढने अब मैं कहाँ जाऊँ।
एक शाम बितानी थी तेरे संग
दुनिया को भूलकर
आसमान छूना था,
उन सपनों को लेकर
अब मैं कहाँ जाऊँ।
तेरे यादों को जो ले आई थी
झोली में भर कर
उन यादों को दफ़नाने
अब मैं कहाँ जाऊँ।
एक शाम जो गुज़री थी
तेरे पलकों के साये
उस शाम को आग देने
अब मैं कहाँ जाऊँ।
तू याद न करना हमें,
हम ने भी भूलाया है तुझे
अगर देना है चिता उन यादों को
तो तू भी चली आना।
बरसात तो होगा ही
असमान भी रोयेगा,
एक दुसरे के कंधे पर रखकर सिर
कुछ देर आँहें भर लेंगे।
यादों की बारात सजेगी
हाथों में तेरे, होगा कुछ भस्म
कुछ मेरे हाथ होगा,
उस भस्म से सजेगी मंडप।
तुझे इकरार हो तो चली आना।
.....लता तेजेश्वर
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
bahut bahut dhanyabaad Sauravji ...koshish rahegi...aap ki amulya sujhav ko dhyan me rakhun.
भाव संप्रेषण शब्द और व्याकरण पर भी निर्भर करते हैं. व्याकरण और अक्षरी सम्बन्धी अशुद्धियाँ खलती हैं.
शुभेच्छाएँ
bahut bahut dhanyabaad jeetendraji...
dhanyabaad बृजेश नीरजji..jarur age khyaal rakhungi.
hosla badane ke liye bahut bahut dhanyabaad vedika ji..
आदरनीया लता जी , सुंदर रचना प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ....
आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
एक निवेदन है कि टाइपिंग की गलतियों पर नजर रखा करें।
सादर!
मन की बात रखी, रचना सुंदर बनी
dhanyabaad maananiya Dr.ashutoshji
dhanyabaad annapurnaji
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