For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वह एक छोटा सा टुकड़ा
जिस में मैने आशाओं को कैद कर
तुम्हें समर्पित किया था,
क्या तुमने वह
कागज का दिल
स्वीकार किया है,
कान्हा …. ?
मेघमाला के द्वारा
जो संदेश तुम्हें भेज था -
क्या उस दिल की धड़कन
तुमने सुनी थी
प्रभु. … ?

हवा में लहराते
मेरे शब्दों की गूँज
क्या तुन तक
पहुँच पायी है,
नाथ  … ?
चंद्रमा को देखते हुए
मेरे दिल में अंकित तुम्हारा रूप
जो मुझे नज़र आता है,
उस चंद्रमा में -
क्या मेरी एक झलक
तुम्हे दिखाई देती है,
कभी …?

तुम्हारे इंतज़ार में
वह स्वर्ण चंपा के नीचे -
बिताई हुई उन रातों का
स्वप्निल नज़ारा
तुम्हारे स्वप्न में
अवलोकन नहीं करता,
गोपाल …. ?

तुम्हारी बंसी से निकली
वह प्यार की धुन -
जो मुझे तुम्हारी ओर
खींच लाती थी,
क्या वह पल अब भी
आप को याद है,
वेणुधर ……. ?

सखी सहेली के संग
स्नान करते समय,
हमारे अंगवस्त्र जो तुम
छुपा लिया करते थे,
अनजान, बेखबर, मासूम बन
वेणुनाद में रत रहते थे-
क्या ये तुम्हें सोभा देता था,
मुरलीधर ……?

फिर भी तुम्हारी चाह में मैने
जो रातें अनिद्रा गुज़ारी हैं,
क्या उन पलों ने कभी तुम्हारे मन को
विचलित किया है,
नंदलाल … ?

हाथों में रची मेहंदी में
तुम्हारा नाम को दोहराते
हुए काँपते ओंठ की चुभन,
कभी आपको
भाव विव्हल नहीं करती,
स्वामी …. ?

मेरे पायल की वह झंकार
क्या आज आपके ह्रदय को
विचलित नहीं करती
प्रभु  …. ?

मेंरे कानों की बालियाँ
जब आपकी वेणुनाद से
मोहित होकर प्रकंपित होती थी,
उस प्रकंपन से -
आप कुछ क्षण ही सही
हमारी तरफ मंत्र मुग्ध होकर
अवलोकन करते थे …
तब आपकी आँखों की
चमक से मेरा तन
संकुचित हो जाता था,
तब आप क्या कहते थे
भूल गए-
कृष्ण … ?

गोपियों संग जब
घड़े में पानी भरकर
हम वापस लौटते थे,
आप वेणु की धुन से
हमारे पैरों को बाँध देते थे
और हम मंत्र मुग्ध होकर
आप की ओर चले आते थे,
तब हाँ तब  …….
हमारे पल्लू को पकड़ कर
आप अपने ओर खींच लेते थे न
कान्हा …।

क्या वह सारी याद आप को नहीं सताती ….
क्या आप की ह्रदय को नहीं झंझोड़ती …
क्या कभी इस राधा की याद नहीं आती … ?
क्या हमारे विरह की घड़ियाँ
आपको नहीं तड़पाती …. ?

फिर.… चले आइए  प्रभु --
एक बार, एक बार फिर
आपकी सुन्दरता को
जी भर के देखलेने दीजिए …

बस्, वह पल को हम
आँखों में ऐसे कैद कर लेंगे की
कभी आप हम से अलग
हो ही नहीं सकते ….
चले आओ प्रभु,
एक बार
सिर्फ एक बार …….
बस्।

© Lata Tejeswar
8/7/2013

composed by, Lata tejeswar,


"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Lata tejeswar on August 28, 2013 at 8:30am

Dhanyabaad adaraniya ... rachana ko sarhane ke liye...

vyakaran/ Taiping me trutiyon ke liye maafi chahungi


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 24, 2013 at 2:22pm

मनमोहन को समर्पित सुकोमल निर्मल भाव..

मीरा सी दर्शन की प्यास.. राधा सी मंत्रमुग्धता 

अभिव्यक्ति के लिए तहे दिल से बधाई आ० लता जी.

( टंकण की और कई जगह व्याकरण की त्रुटियाँ रह गयी हैं, उन्हें अवश्य ही सुधार लें )

शुभेच्छाएँ 

Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 12:05pm

कान्हा की याद में राधा के भावों को बहुत ही सुन्दरता से शब्द देने का प्रयास किया है। आपको हार्दिक बधाई!

व्याकरण/ टाइपिंग की त्रुटियों पर ध्यान दें। इससे पठन बाधित होता है।

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 24, 2013 at 11:27am

वाह अप्रितम श्री कृष्ण के प्रति राधा जी के ह्रदय में विद्यमान प्रेम भाव समर्पण का बहुत ही सहजता एवं सुन्दरता से वर्णन किया है आपने आदरणीया इस भाव प्रधान सुन्दर रचना हेतु हृदयतल से बधाई स्वीकारें.

Comment by Lata tejeswar on August 23, 2013 at 11:23am
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 22, 2013 at 7:30pm

सुंदर व् भावनाओं से ओतप्रोत रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया लता जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 22, 2013 at 3:39pm

सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !!

Comment by वेदिका on August 22, 2013 at 2:30pm

भक्ति के भाव में तिरोहित रचना !!

बधाई आदरणीया लता जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service