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पोखर छल छल जल भरे ,धुले धुले मैदान|

काई ने पहना दिए , हरित नवल परिधान||

धरती अंतर में छुपा,दादुर जीव विचित्र|  

नव चौमासे ने कहा ,बाहर आजा मित्र|| 

मुक्तक फूटें  मेघ से ,टपर टपर टपकाय |    

प्यासा चातक चुन रहा,चरुवा भरता जाय|| 

 

नित नवल प्राकृतिक सृजन ,मिले जो रश्मि पात|

रेशा रेशा झूमता , हँसते निशा  प्रभात || 

चटक चम्पई चांदनी,उजली उजली भोर|

कुसुमागम की थाप पर,नाचे मन का मोर||

जड़ चेतन सब ने किया ,सावन का सम्मान|

देखो जीवन पा रहे , खेतों में अब धान||

**********************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by कल्पना रामानी on July 26, 2013 at 7:22pm

मुक्तक फूटें  मेघ से ,टपर टपर टपकाय |    

प्यासा चातक चुन रहा,चरुवा भरता जाय|| .....

बहुत सुंदर दोहे.... आदरणीय राजेश कुमारी जी, बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 26, 2013 at 7:07pm

चन्द्र शेखर पाण्डेय जी आपको दोहे पसंद आये हार्दिक आभार आपका|

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on July 26, 2013 at 5:25pm

चटक चम्पई चांदनी,उजली उजली भोर|

कुसुमागम की थाप पर,नाचे मन का मोर||  वाह कितना सुन्दर चित्रण किया मानस पटल पर ये चित्र सजीव हो गये। आपको नमन

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