"मीता देखो अभी वक़्त है फैसला बदल लो, ईद का दिन है कहीं कुछ भी हो सकता है.. फ्लाईट से चलते हैं.."
"नहीं पहले प्रोग्राम के अनुसार ही चलते हैं", मीता अपने पति से बोली, "देखो आते वक़्त जम्मू से श्री नगर के रास्ते की कितनी खूबसूरत यादें हमारे कैमरे में बंद हैं ! जाते वक़्त भी जो जगह छूट गई थी.. उनकी तस्वीरें भी कैद करुँगी, ईद के दिन कश्मीर कैसा लगता है.. देखना चाहती हूँ.. देखो कैसा दुल्हन की तरह सजा है.. लोग बड़े बूढ़े बच्चे स्त्रियाँ कितने सुंदर लिबास में सजे धजे घूम रहे हैं, इस ख़ूबसूरती को अपनी यादों की डायरी में लिखना चाहती हूँ ।"
क्लिक क्लिक क्लिक के साथ सफ़र जारी था कि अचानक जैसे ही गाड़ी ने किश्त्वाडा में प्रवेश किया, सड़क पर रंग बिरंगी पोशाकों में लोगों का हुजुम देख धीरे हुई. मीता की आँखे एक बार को चमक उठी कि चलो इस ईद के जश्न को आराम से कैमरे में कैद करुँगी. इतने में एक आदमी बदहवास सा खिड़की के पास आकर घूरने लगा.
मीता ने कहा, "भाई जी ईद मुबारक !!.."
"चले जाओ नहीं तो पेट की अंतड़ियां बाहर निकाल के रख दूंगा.." और जैसे ही उसने एक धारदार हथियार बाहर निकाला ड्राइवर ने गाडी की रफ़्तार बढ़ा दी. थोड़ी दूरी पर ही पुलिस ने गाडी का रास्ता डाइवर्ट कर दिया जो एक गाँव से होता हुआ आगे जाकर हाइवे से मिला. जम्मू रेल्वेस्टेशन पर पंहुच कर भीड़ का सैलाब देख कर मीता दंग रह गयी. थोड़ी देर बाद पता चला कि लोग हजारों की संख्या में जम्मू से पलायन कर रहे हैं और किश्तवाडा में कई लोग मर चुके हैं. सब ओर कर्फ्यू लग चुका है.
यह सुनकर मीता ने हाथों से अपनी आँखें बंद कर ली. पति ने पूछा, "तुम सोच रही हो ना..कि मेरी बात ना मानकर तुमने गलती की..?"
"नहीं.. मैं सोच रही हूँ कि जिस अल्लाह की खातिर एक महीने तक उपवास रख कर ये पाक पर्व मनाया जाता है, क्या उसमें इस कत्ले आम के लिए ख़ुदा इजाजत देता है ?.. क्या यही धर्म होता है??.."
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वसुंधरा पाण्डेय जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता प्रदान कर रही है
झिंझोड़ दिया लघु कथा ने...आदरणीया राजेश जी बहुत-बहुत बधाई...!!
आदरणीय सौरभ जी सच कहा ये धर्म नहीं है ये अंधी राजनीति के कुत्सित षड्यंत्रों के परिणाम है जिसको आज आम नागरिक भोग रहा है दिलों में वैमनस्य का बीज डालकर अपनी जड़ें मजबूत करते हैं इनको किसी की जान या इज्जत की कहाँ परवाह है
रचना पर आपके विचार पढ़ कर अच्छा लगा दिल से आभारी हूँ
ये धर्म है ? नहीं.. . यह कुत्सित राजनीति का अवैध प्रतिफल है जो हम सब का भोगा हुआ यथार्थ होता जा रहा है !
सादर
विजय मिश्र जी आपने सही कहा कोई धर्म इसकी इजाजत नहीं देता कथा के मर्म का अनुमोदन करने हेतु हार्दिक आभार आपका |
मीना पाठक जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका
जायज प्रश्न, कोई भी धर्म किसी की जान लेने की इजाजत नही देता और आतंकियों का कोई धर्म नही होता | सार्थक लघुकथा, बधाई स्वीकारें
सादर
शुभ्रांशु पाण्डेय जी रचना के मर्म को व् सरोकार को आपने सही पकड़ा है इससे अधिक कुछ नहीं कह पाउंगी बस कहानी के माध्यम से लोगों का मंतव्य /पक्ष जानना चाहती थी ,फिलहाल रचना पर आपके विश्लेषण के लिए दिल से आभारी हूँ |
आदरणीय शिज्जू जी आपका कहना सही है जो सच्चा मुसलमान होगा वो किसी की जान नहीं लेगा क्यूंकि कुरआन शरीफ में कहीं भी हिंसा या क़त्ल को जायज नहीं ठहराया गया ,किन्तु ये हो रहा है कहीं तो गड़बड़ है ये खून क्या दुसरे रंग का हो गया जिसमे इंसान इंसान को कीड़े मकोड़े की तरह मार देता है इसका मजहबी तकरार/ बवाल का जिम्मेदार अधिकतर हमारा प्रशासन ही है जिसको अंग्रेजों की वो चाल अच्छी तरह समझ में आती है की डिवाइड एन्ड रूल ,आपने रचना को सराहा इस विश्लेषण के लिए दिल से आभार
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