जब घिर बदरा रिम झिम बरसे , तब दादुर नाचे बन मोर | | ||
पवन बहे जब झूम झूम के , तब घासें झूमें झकझोर | | ||
चाँद छुप छुपआये गगन में , जनु चाँदनी छुपे हर ओर | | ||
आया है मन भावन सावन , सब कजरी गावें चहुओर | | ||
डाली झूम जनु गुनगुनायें , कोयल भी गाये दिल खोल | | ||
मीन उछल नीर बीच डोले , उड़ खग बोलें मीठे बोल | | ||
सागर गले लगाये नाला , उमड़ घुमड़ नदी करें मोल | | ||
भानू का अब पता नहीं है , दिन लगे जनु रात अनमोल | | ||
धान जनु ख़ुशी में लहराये , मक्का खड़ा बजाये ढोल | | ||
गन्ना की अब चढी जवानी , झूम झूम रहर करे गोल | | ||
बन्दर भीग डाल चढ़ डोले , गर्मी का हँस खोले पोल | | ||
गगन मगन रह रह कर झाँके , घनों में छुप बनाये बोल | | ||
मौसम लगे कितना सुहाना , जब झम झम बरसे चहुओर | | ||
रंग रंग के फूल खिले हैं , घूमने पर करे दिल जोर | | ||
नभ जल थल सब ही सम लागे , दोपहरी जनु लागे भोर | | ||
वर्मा सावन है अति पावन , वीर छंद भावे मन मोर |
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Comment
आदरणीय ,
सही राय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
सादर,
चाँद छुप छुपआये गगन में , जनु चाँदनी छुपे हर ओर .. प्रथम चरण का वाक्य विन्यास ही गलत है सो गयता को बधित होनी ही है |
डाली झूम जनु गुनगुनायें , कोयल भी गाये दिल खोल .. मात्रा गिनकर पद रच देते हैं क्या भाई ?.. प्रथम चरण को क्या किया है ? |
मीन उछल नीर बीच डोले , उड़ खग बोलें मीठे बोल |.. उपरोक्त हाल इस पद के प्रथम चरण का भी है. |
सागर गले लगाये नाला , उमड़ घुमड़ नदी करें मोल .. . दूसरे चरण को देखाभाईजी... . !! |
भानू का अब पता नहीं है , दिन लगे जनु रात अनमोल ... . दिन रात की तरह अनमोल ? यह् कुछ स्पष्ट नहीं हुआ |
आगे के पदों को इसी तरह देख लीजिए भाई जी. |
एक बात आपके अवश्य जानने की है कि किसी मात्रिक पद के चरणों में द्विकल त्रिकल चौकल आदिशब्दों का सधा हुआ प्रयोग होता है तब चरण और तनुरूप पद की कुल मात्रा गिनी जाती है. यही पद्य व्यवहार है. |
शुभच्छाएँ |
आदरणीय श्याम जी वीर छंद पर प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें किन्तु रचना में अभी बहुत कसावट की कमी है प्रवाह भी बाधित हो रहा है.
सावेन के मौसम पर रची सुन्दर रचना के लिए बधाई श्याम नारायण वर्मा जी
सुंदर रचना प्रस्तुति पर , हार्दिक बधाई ,आदरणीय श्याम नारायण जी..
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