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दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर

सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले

बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल

मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक

कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता- ताल्लुक, संपर्क

वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले

दुष्यंत................

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Comment by Admin on May 20, 2010 at 1:57pm
मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले,
दुष्यंत साहब एक बार फिर आपने बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल पेश किया है, साथ मे आप ने जो उर्दू / अरबी लफ्जो का हिंदी अनुबाद दे दिया है वो काबिले तारीफ है, जिससे मुझ जैसे पाठको को समझने मे आसानी होती है और नये शब्द भी सिख पाते है, aagey भी aapki ग़ज़ल का siddat sey intjaar raheyga, shukriya,
Comment by Rash Bihari Ravi on May 20, 2010 at 1:49pm
बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
bahut khub
Comment by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:34pm
kanchan ji pal me hi apne mujhe kaha se kaha pahucha diya....khair zarranavazi ka shukriya....aur haan shukriya is forum ka ki mujhe bhi itne zaheen aur haseen logo ke sath ka lutf uthane ka mauka aur anubhav sajha karne ka manch mila hai........yograj ji ko barambar pranaam
Comment by Kanchan Pandey on May 20, 2010 at 1:31pm
वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले
kabhi kabhi jubaan dhokha dey jaati hai, shabd sath chhod jatey hai, yey gazal padh kar kamoves mera bhi haal wahi huwaa hai, ees ghazal ko padhney key baad mujhey wo taarif key shabd nahi mil rahey hai , bahut hi umdda ghazal kaha hai aapney,
Bahut bahut dhanyabad hai aap shayaro / sahityakaro ka aur bahut bahut dhanyabad hai open books online walo ka jisney eetana sunder manch diya hai jaha aakar eetaney mahan logo ko padhney ko mil raha hai,

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