शब्दों की जुगाली
करत रहा मनवा ये मवाली
लुच्चे से ख़यालात
लफंगे से अहसास
बदमाश जज़्बात
सोच रहा हूँ
सुना दूं इन्हें
उम्रकैद की सज़ा
डायरी के पन्नों में
Added by दुष्यंत सेवक on April 21, 2012 at 5:27pm — 9 Comments
१. मनमीत रे
Added by दुष्यंत सेवक on February 18, 2012 at 5:30pm — 5 Comments
आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार
द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार
झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन
सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........
Added by दुष्यंत सेवक on October 24, 2011 at 6:38pm — 4 Comments
घर शिफ्टिंग के दौरान एक पुरानी diary हाथ लगी और गर्द झाड़ी तो यह रचना नमूदार हुई. इस पर तारीख अंकित थी 12-8-1999...मैने सोचा कच्ची उम्र और कच्ची सोच की यह रचना के सुधि पाठकों की नज़र की जाए.
तुम्हारी जो ख़बर हमें है
वो किसी और के पास कहाँ
देख लेता हूँ कहकहों में भी
आंसू के कतरे
ऐसी नजर किसी और के पास कहाँ
ज़माने ने ठोकरें दी पत्थर समझकर
तुने मुझे सहेज लिया मूरत समझकर
होगी अब हमारी गुजर
किसी और के पास कहाँ
उम्र भर देख लिया
बियाबान में…
Added by दुष्यंत सेवक on September 13, 2011 at 6:44pm — 6 Comments
अपने हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
उसको छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊँगा
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़िला हो जाऊँगा
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी अह्द—ए—वफ़ा
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा?
/ वसीम बरेलवी
Added by दुष्यंत सेवक on August 20, 2011 at 12:00pm — 4 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on March 8, 2011 at 12:00pm — 5 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on July 5, 2010 at 12:05pm — 9 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on June 11, 2010 at 11:41am — 5 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on May 31, 2010 at 4:31pm — 9 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on May 21, 2010 at 11:42am — 5 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 1:05pm — 14 Comments
Added by दुष्यंत सेवक on May 20, 2010 at 12:30pm — 7 Comments
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