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पावस के कुछ दोहे-

तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.

मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.

सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन मन हुआ,सावन सावन देह.

पावस में ऐसे मदन,अकुलाता है प्राण
इंद्रधनुष पर साधता,है बूँदों के बाण.

इत पानी का बुलबुला,उत पानी की बूँद
पानी पानी हो गये,दोनों आँखें मूँद.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on August 4, 2013 at 6:27pm

वाह! मन गदगद हो गया! बहुत ही सुन्दर और आकर्षक! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on August 4, 2013 at 2:28pm

 वाह !बहुत ही सुंदर दोहावली आदरणीय राजेश जी हार्दिक बधाई स्वीकार करे मनमोहक प्रस्तुति पर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 3, 2013 at 8:38pm

अद्भुत , अप्रतिम ...बहुत सुन्दर दोहे ...पाँचों दोहे मन मोह गए..हार्दिक बधाई|

Comment by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:45am

सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन मन हुआ,सावन सावन देह.

 आदरणीय शर्मा सर, सुन्दर दोहों की बधाई !

Comment by राजेश शर्मा on August 2, 2013 at 8:01pm

बहुत बहुत धन्यवाद ,आदरणीय.लडीवालाजी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2013 at 2:19pm

पावस ऋतू पर रचित सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई श्री राजेश शर्मा जी, 

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