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तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब भी सोया अकेली रातों में

डूबता रहा  तुम्हारी बातों में 

कभी थे हाथ, तेरे हाथों  में 

हाँ! तुम  ही तुम महकती थीं 

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब होती थीं तुम तन्हाई में 

विरह की सम्वेदित अंगड़ाई में 

भावों की असीम गहराई में 

साध चुप्पी, तुम बिलखती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

मुझे याद है वे सारे पल 

वह परसों, आज और कल

जब टूटा था तेरा सम्बल

तुम भरे गले से  हिलकती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

तेरे मतवाले नशीले नयन 

घायल करते थे मेरा मन 

बाँहों में तेरी, जो अपनापन

जुल्फें रोज ही उलझती थीं

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

जब प्रेम पर पहरेदारी हुई 

दिल में चुभी ज्यों गर्म सुई

धीमी जलती धडकन की रुई

तुम  भी तो उधर सुलगती थीं 

तुम्हारी चूड़ियां खनकती थीं 

           

 -जितेन्द्र 'गीत' 

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 4:20pm

आदरणीय अरुण अनंत जी

आपकी विस्तृत व् उत्साह बर्धक प्रतिक्रिया से, मुझे बहुत मनोबल मिला, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 11, 2013 at 3:13pm

वाह आदरणीय जीतेंद्र भाई मान गए आपको क्या सुन्दर मनोहारी दृश बांधा है आपने विरह की वेदना में ह्रदय पर क्या क्या गुजरती है उसका सुन्दरता से वर्णन किया है आपने मजा आ गया भाई. यह ओ बी ओ का जादू है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 11:31am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीरज जी,

स्नेह बनाये रखिये

सादर!

Comment by Neeraj Nishchal on August 11, 2013 at 10:49am
बहुत ही सुन्दर कविता है ....
बहुत बहुत शुभकामनाएँ जीतेन्द्र भाई
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:46am

आदरणीया वसुंधरा जी,

आपकी रचना पर प्रतिक्रिया से , लेखनकर्म को उर्जा मिली, आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:41am

आदरणीय श्याम नारायण जी

बहुत बहुत आभार आपका

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:30am

आदरणीय अभिनव अरुण जी

आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया , लेखनी की सार्थकता का प्रमाण है

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:27am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी

रचना में भावों की सुन्दरता सराहने हेतु, आपका बहुत बहुत आभार

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:25am

आदरणीया शुभ्रा जी

आपने रचना को सराहा, बहुत बहुत आभार आपका

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 11, 2013 at 9:10am

आदरणीय शिज्जू जी,

आपको रचना पसंद आयी, लेखन कर्म सार्थक हुआ, बहुत बहुत आभार 

सादर

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