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प्रिय वन्दना जी
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है ...
शोक,हर्ष,उत्थान-पतन
हमें तपा कुन्दन करते ।
अगम सिन्धु की झंझा में
कर्म सदा नौका बनते।.................बड़ी बात
निष्कामी आराधक बन.............वाह ..सुन्दर
जग-वन्दन करना सीखें।।
इस बंद के कथ्य नें मन मोह लिया ...बहुत बहुत बधाई
शोक,हर्ष,उत्थान-पतन
हमें तपा कुन्दन करते ।
अगम सिन्धु की झंझा में
कर्म सदा नौका बनते।
निष्कामी आराधक बन
जग-वन्दन करना सीखें।
बात ऊँची भी है तो सार्थक भी.. सतत प्रयास करती चलें.
शुभेच्छाएँ
आदरणीया वंदना जी:
//प्राण मात्र से प्रीति करें,
प्रेम-पात्र जो बनना है।
अब तो जग जा,ओ रे मन!
मग यदि सुगम बनाना है।
प्रीति सुमन की चाह अगर
जड़ सिंचित करना सीखें।।//
जीवन के गूढ़ रहस्यों को
कितने सुन्दर तरीके से वर्णित किया है आपने ।
बस, ऐसे ही और लिखती रहें।
आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आदरणीया वंदना जी बहुत बढ़िया , इस संदेश परक रचना हेतु हार्दिक बधाई ।
आदरणीया वंदना जी वाह इस शिक्षाप्रद रचना एवं सुन्दर सन्देश देती हुई रचना हेतु ह्रदय से ढेरों बधाई स्वीकारें.
प्राण मात्र से प्रीति करें,
प्रेम-पात्र जो बनना है।
अब तो जग जा,ओ रे मन!
मग यदि सुगम बनाना है।
प्रीति सुमन की चाह अगर
जड़ सिंचित करना सीखें..............अंतर को झंझोडति पंक्ति
सुसंदेश देती हुयी रचना पर, हार्दिक बधाई आदरणीया वंदना जी
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