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!!! गीत !!!


तुम राष्ट् के कर्णधार देवदूत हो,
यदि शांति का, मार्ग दर्शन कर सकोगे?

नित नये नूतन किसलय अरूणिमा में,
या सांझ की श्याम धुन बांसुरिया हो।
धूप भी चन्दन लगेगा दोपहरिया में,
राष्ट् को यदि कीर्ति गौरव दे सकोगे? 1

तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,
देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।
प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,
राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? 2

सत्यम आहिंसा प्रेमु धन खूब लुटाओ,
राजपथ का मार्ग भी अवरूध्द हो जाये।
ज्ञान की वर्षा से जन शिक्षित हो जाये,
राष्ट् को यदि एक गांधी दे सकोगे? 3

देश हो गुलशन बहारें महका देंगी,
देश के कृषक और जवान झूम उठेंगे।
अन्न का अम्बार-त्यौहार जगमगाये,
राष्ट् को यदि लाल-जवाहर दे सकोगे? 4

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on August 13, 2013 at 9:46am

तुम मनुष्य हो कर्म का फल भूल जाओ,
देश-धर्म हित लड़ो स्व भूल जाओ।
प्यार की पवि़त्र गंगा हर कहीं हो,
राष्ट् को यदि एक भगीरथ दे सकोगे? ............

 

सुंदर भावपूर्ण गीत के लिए बधाई आपको.....

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 13, 2013 at 8:55am

केवल भाई जी , बहुत अच्छा गीत , सुन्दर प्रस्तुति , बधाई !!!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 8:56pm

आ0 अन्नपूर्णा जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत बहुत आभार।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 11, 2013 at 11:48pm

आ० केवल भाई जी हर पंक्ति ने मन मोह लिया हर पंक्ति कुछ न कुछ संदेश देती सी प्रतीत हो रही है इस प्रस्तुति हेतु बहुत बधाई। सादर।

कृपया ध्यान दे...

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