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सावन गीत (राजेश कुमार झा)

सांवरी सुन सांवरी
आई मधुर मधुश्रावणी

नभ मीत हृद पर दामिनी
नव ताल से इठला रही
या दिगंबर को उमा
अपनी झलक दिखला रही

सुन सौरभे, हर-गौर, वे
आए स्‍वयं भव-भामिनी

सांवरी.....................

बावरा बादल मचलता
ढूंढता जिस मीत को

नेह सिंचित दश दिशाएं

लिख रही उसी गीत को

सुन वल्‍लभे, मुग्‍धे सुहासित
त्रिभुवन पगी विरूदावली

सांवरी....................

तरू-ताल लकदक , भींगते
सारी धरा अम्‍लान है

निर्जला व्रत देह सा ही
दिनमणि का ध्‍यान है

जटाजूट बंकिम इन्‍दु, गंगे
रच रही चूड़ामणि

सांवरी...............

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by अरुन 'अनन्त' on August 13, 2013 at 10:07am

आदरणीय राजेशा भाई जी गीत ने मन मोह लिया बेहद सुन्दर सुमधुर मनोहारी गीत रचा है आपने हार्दिक बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर.

Comment by कल्पना रामानी on August 13, 2013 at 9:21am

सुमधुर सावन गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई राजेश जी।

सादर

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on August 13, 2013 at 8:51am

सावन का इतना मनमोहक वृत्तांत .. बहुत खूबसूरत रचना 

Comment by vijay nikore on August 13, 2013 at 6:19am

आदरणीय राजेश जी:

इस मधुर गीत के लिए साधुवाद।

सादर,

विजय निकोर

Comment by annapurna bajpai on August 12, 2013 at 10:56pm

आ० राजेश जी भावपूर्ण सुंदर गीत हेतु बधाई ।

Comment by shubhra sharma on August 12, 2013 at 10:49pm

आदरणीय राजेश जी ,अलंकृत शब्दों से सुसज्जित सावन गीत  के लिए  हार्दिक बधाई 

Comment by D P Mathur on August 12, 2013 at 9:55pm

अति सुन्दर गीत , बधाई  !

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 12, 2013 at 9:05pm

आ0 राजेश भाई जी, वाह! वाह! //सुन वल्‍लभे, मुग्‍धे सुहासित, त्रिभुवन पगी विरूदावली//
बहुत ही सुन्दर लयबध्य सावन गीत। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 12, 2013 at 6:21pm

बावरा बादल मचलता, ढूंढता जिस मीत को

नेह सिंचित दश दिशाएं, लिख रही उसी गीत को

सुन वल्‍लभे, मुग्‍धे सुहासित,त्रिभुवन पगी विरूदावली

सांवरी सुन सांवरी, आई मधुर मधुश्रावणी---------------- सवान का मधुर गीत ! बहुत सुन्दर | हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा साहब 

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