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जो मै नेता होती ( हास्य कविता )

यदि होती नेता मै  

सिंहासन पर बैठती

अगल बगल प्यादे

लंबी मोटर कार होती

तिजोरी भर धन होता

यहाँ कुछ वहाँ होता  

षटरस व्यंजन खाती

गिनती एक न करती

देना तो दूर की बात

सब छीन ले आती

भूखे कितने भी भूखे

दो रोटी की थाली

बनवाती संग मे

चावल , कटोरी दाल

बोनस कह कद्दू देती

उन्नति का ठेंगा

पड़े रहते सब नेता

जो बिचारे फिरते है

वोट मांगते रहते है

अंत मे मौन रहे साध

आँख मूँद रहे अगाध

प्यादे बोलते हैं

प्यादे ही करते है

निपट निखट्टू सुनते

मंत्री जो संतरी कहते

चुपचाप की राजनीति

समझ न आती रीति

ऐसा ही करती

जो नेता होती ।.......................... अन्नपूर्णा बाजपेई

 

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

 

 

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 11:46pm

आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 14, 2013 at 9:13pm

आदरणीया अन्न्पूर्णा जी ..व्यंग्य से युक्त सुन्दर रचना ...आज के हालत बद से बदतर होते जा रहे लगता है नेता हमारे समाज से मतलब ही नहीं रखते ....
आभार
भ्रमर ५

Comment by annapurna bajpai on August 14, 2013 at 11:16am

आदरणीय श्याम नारायण जी , अमन कुमार जी आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Shyam Narain Verma on August 13, 2013 at 4:13pm

बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको

Comment by aman kumar on August 13, 2013 at 2:38pm

वर्तमान राजनीति की सच्चाई है आपकी रचना मे 

अंत मे मौन रहे साध

आँख मूँद रहे अगाध

प्यादे बोलते हैं

प्यादे ही करते है

निपट निखट्टू सुनते|

अच्छी रचना है आभार

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