बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर
उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर
ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया
अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया
उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया
किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया
इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?
शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल।
रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है
भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है
मै परिचित हूँ परिस्थिति क्या होती है युद्धों में
पर क्या समझौता उचित लग रहा है इन मुद्दों में
जिनके शीश कटे हैं उनकी माताओं से जानो
बेटा, पति, भाई खोने के दुःख को तो पहचानो
चुप्पी से भारत की सेना का स्वाभिमान गिरता है
और नहीं कुछ सैनिक में बस देश प्रेम मरता है
देश प्रेम मर जाने से शत्रु साहस बढ़ जाता है
छोटे से छोटा शत्रु भी भारत पर चढ़ आता है
पर क्या समझेंगे वो जो अब तक सत्ताधारी है
फिर से सत्ता हांसिल करने की केवल तैयारी है
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है
कल फिर से भारत में हम आजादी पर्व मनायेगे
आजादी की खुशियों में फिर झूमे नाचेंगे गायेंगे
बलिदानी वीरों को केवल पुष्पांजलि दे देने से
थोडा झंडा झुका के उनको श्रधांजलि दे देने से
भारत में पैदा होने का धर्म नहीं पूरा होता है
भारत में पैदा होने का कर्म नहीं पूरा होता है
अपना केवल दाइत्व नहीं होता पोषण परिवारों का
रण लड़ना पड़ता है सबको भारत के अधिकारों का
बलिदानी वीरों का कहीं बलिदान न खाली जाये
कोटि कोटि सन्तति माता की दूध लजा न जाये
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है
"मौलिक व अप्रकाशित"
शब्दकार : आदित्य कुमार
Comment
आदरणीय अग्रज श्री सौरभ जी आपका हार्दिक धन्यवाद्। आपकी टिप्पड़ियां मुझे संबल देती है। आशा करता हूँ आपका स्नेह बना रहेगा।
भाई आदित्य कुमारजी, आपकी ओजपूर्ण रचना से मन प्रसन्न हो गया. कथ्य हेतु शिल्प आदि पर आप सजग हों. आपकी नैसर्गिक प्रतिभा के प्रति आश्वस्ति जगाती प्रस्तुत रचना के लिए आपको शुभकामनाएँ
आपका हार्दिक अभिनन्दन है आदरणीय Dr.Prachi Singh जी यदि आपसे समय समय पर मार्गदर्शन प्राप्त होता रहेगा तो निश्चित ही मै अपनी रचनाओ में सुधर ला सकूँगा।
आ० आदित्य कुमार जी
बहुत सार्थक ज्वजल्यमान भाव शब्द चिंतन प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति..बहुत बहुत बधाई
बस थोड़ा सा शिल्प के तौर पर और साधने की ज़रूरत है, सतत सजग लेखन से यह भी स्वतः ही सधता जाएगा.
शुभकामनाएँ
आदरणीय अग्रज विजय मिश्र जी मेरे ब्लॉग पर आकर प्रतिक्रिया देने के लिए मै आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ ! आपका सदा स्वागत है. बस यूँ ही आप मेरे साथ बने रहिये भाईसाहब
आपका हार्दिक धन्यवाद् आदरणीय giriraj bhandari जी
सच कहे भाई आदित्य !!
कभी कभी मुझको लगता है, भारत में सरकार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है
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