मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
शब्द्कार : आदित्य कुमार
Comment
शुभ-शुभ
आदरणीय बृजेश नीरज जी आपका हार्दिक धन्यवाद्
आदरणीय विजय मिश्र जी आपका हार्दिक धन्यवाद्
आदरणीय Dr.Prachi Singh जी आपका हार्दिक धन्यवाद्
आदरणीय annapurna bajpai जी आपका हार्दिक धन्यवाद्
आ० आदित्य जी बहुत सुंदर भाव । शुभकामनायें ।
बहुत सुन्दर व उन्नत भावों की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बहुत सुन्दर प्रयास! आपको हार्दिक बधाई!
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