हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है
संस्कृति के जीवित रहने की आशा है
एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है
भारत माता का अविरल आराधन है
हिंदी पावनता का एक उदाहरण है
मातृभूमि की अखंडता का कारण है
उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक
सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं
हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है
संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है
पूरब में उगते सूरज की आभा है
पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है
जन मन की अभिव्यक्ति की…
ContinueAdded by Aditya Kumar on September 14, 2016 at 8:51pm — 11 Comments
विश्व पटल पर अगणित होकर
कोटि कोटि नव योगी बनकर
वसुधैव कुटुंबकम रूपम
स्वप्न हमारा योग दिवस की
शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।
भारत स्वयं ही जनक योग का
करे निवारण रोग रोग का
निज संस्कृति घोतक स्वरुप
आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित
अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है
विश्व गुरु वाली वह संज्ञा
केवल संज्ञा भर न रह कर
ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो
पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर
भारत अपना परचम…
Added by Aditya Kumar on June 22, 2015 at 12:50pm — 9 Comments
पुलक तरंग जान्हवी,
हरित ललित वसुंधरा,
गगन पवन उडा रहा है
मेघ केश भारती।
श्वेत वस्त्र सज्जितः
पवित्र शीतलम् भवः
गर्व पर्व उत्तरः
हिमगिरि मना रहा।
विराट भाल भारती
सुसज्जितम् चहुँ दिशि
हरष हरष विशालतम
सिंधु पग पखारता।
कोटि कोटि कोटिशः
नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः
नभ नग चन्द्र दिवाकरः
उतारते है आरती।
ओम के उद्घोष से
हो चहुँदिश शांति
हो पवित्रं मनुज मन सब।
और मिटे सब…
Added by Aditya Kumar on June 12, 2015 at 12:48pm — 19 Comments
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।
भारत को तमलीन जगत में,
ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।
आओ मिल कर करें सभी प्रण,
भारत के हित हों अर्पण।
अपने जीवन के कुछ क्षण,
भारत को स्वच्छ बनायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए जलाएं।।
आओ मिल कर लड़ें एक रण,
अपने भीतर का रावण।
कभी स्वांस नहीं ले पाये,
हम भ्रष्टाचार मिटायें।।
आओ मिल कर दिए जलाएं,
आओ मिल कर दिए…
ContinueAdded by Aditya Kumar on October 22, 2014 at 1:48pm — 3 Comments
शिशु रूप में प्रकट हुए तुम,
अंधकारमयी कारा गृह में,
दिव्यज्योति से हुए प्रदीपित,
अतिशय मोहक अतिशय शोभित,
अर्धरात्रि को पूर्ण चन्द्र से
जग को शीतल करने वाले
संतापों को हरने वाले,
अवतरित हुए तुम, अंतर्यामी!
हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!
किन्तु देवकी के ललाट पर,
कृष्ण! तुम्हे खोने का था डर,
तब तेरे ही दिव्य तेज से
चेतनाशून्य हुए सब प्रहरी,
चट चट टूट गयी सब बेडी
मानो बजती हो रण भेरी,
धर कर तुम्हे शीश पर…
Added by Aditya Kumar on August 28, 2013 at 9:00pm — 17 Comments
घोर तिमिर है,
कठिन डगर है,
आगे का कुछ नहीं सूझता,
पीछे हट जाने का डर है।
मन में इच्छाएं बलशाली
शोणित में भी वेग प्रबल है,
रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे
टूट रहा अब क्यों संबल है
मैंने अपनी राह चुनी है
दुर्गम, कठिन कंटकों वाली
जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे
जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली
धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें
देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें
सूखा कंठ, प्राण हैं अटके
कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के
आगे बढ़ना भी दुष्कर…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 21, 2013 at 4:27pm — 21 Comments
मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।
चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।
"मौलिक व अप्रकाशित"
शब्द्कार : आदित्य कुमार
Added by Aditya Kumar on August 18, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर
उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर
ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया
अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया
उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया
किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया
इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?
शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल।
रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है
भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है
कभी कभी मुझको लगता है, भारत…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 14, 2013 at 9:46pm — 8 Comments
पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है
जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है
सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ
गंगा की पावन धारा से सिंचित है
जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे
छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे
जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला
जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद हुआ
जिसको राम लला की धरती कहते है
गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है
जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया
जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया
जहाँ निरंतर वैदिक…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 4, 2013 at 8:00pm — 22 Comments
मेरे मन का तुम आकर्षण हो
इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो
तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो
तुम ताजमहल से सुन्दर हो
बस तुम ही मेरी प्रियतम हो
दुनिया में तुम सुन्दरतम हो
तुम ही हो मेरा प्रेम राग
तुम ही हो मेरी प्रेम आग
मै भ्रमर बना तुम हो पराग
तुम मन मंदिर का हो चिराग
बस तुम ही मेरी प्रियतम हो
दुनिया में तुम सुन्दरतम हो
तुम ध्येय मेरे जीवन का हो
तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 1, 2013 at 6:43pm — 5 Comments
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