For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Aditya Kumar's Blog (10)

हिंदी

हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है

संस्कृति के जीवित रहने की आशा है

एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है

भारत माता का अविरल आराधन है

हिंदी पावनता का एक उदाहरण है

मातृभूमि की अखंडता का कारण है

उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक

सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं

हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है

संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है

पूरब में उगते सूरज की आभा है

पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है

जन मन की अभिव्यक्ति की…

Continue

Added by Aditya Kumar on September 14, 2016 at 8:51pm — 11 Comments

योग दिवस की शुभ प्राची में

विश्व पटल पर अगणित होकर

कोटि कोटि नव योगी बनकर

वसुधैव कुटुंबकम रूपम

स्वप्न हमारा योग दिवस की

शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।

भारत स्वयं ही जनक योग का

करे निवारण रोग रोग का

निज संस्कृति घोतक स्वरुप

आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित

अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है

विश्व गुरु वाली वह संज्ञा

केवल संज्ञा भर न रह कर

ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो

पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर

भारत अपना परचम…

Continue

Added by Aditya Kumar on June 22, 2015 at 12:50pm — 9 Comments

पुलक तरंग जान्हवी

पुलक तरंग जान्हवी,

हरित ललित वसुंधरा,

गगन पवन उडा रहा है

मेघ केश भारती।

श्वेत वस्त्र सज्जितः

पवित्र शीतलम् भवः

गर्व पर्व उत्तरः

हिमगिरि मना रहा।

विराट भाल भारती

सुसज्जितम् चहुँ दिशि

हरष हरष विशालतम

सिंधु पग पखारता।

कोटि कोटि कोटिशः

नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः

नभ नग चन्द्र दिवाकरः

उतारते है आरती।

ओम के उद्घोष से

हो चहुँदिश शांति

हो पवित्रं मनुज मन सब।

और मिटे सब…

Continue

Added by Aditya Kumar on June 12, 2015 at 12:48pm — 19 Comments

आओ मिल कर दिए जलाएं

आओ मिल कर दिए जलाएं,

आओ मिल कर दिए जलाएं।

भारत को तमलीन जगत में,

ज्योतिर्मय पुनः बनायें।।

 

आओ मिल कर करें सभी प्रण,

भारत के हित हों अर्पण।

अपने जीवन के कुछ क्षण,

भारत को स्वच्छ बनायें।।

 

आओ मिल कर दिए जलाएं,

आओ मिल कर दिए जलाएं।।

 

आओ मिल कर लड़ें एक रण,

अपने भीतर का रावण।

कभी स्वांस नहीं ले पाये,

हम भ्रष्टाचार मिटायें।।

 

आओ मिल कर दिए जलाएं,

आओ मिल कर दिए…

Continue

Added by Aditya Kumar on October 22, 2014 at 1:48pm — 3 Comments

हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!

शिशु रूप में प्रकट हुए तुम,

अंधकारमयी कारा गृह में,

दिव्यज्योति से हुए प्रदीपित,

अतिशय मोहक अतिशय शोभित,

अर्धरात्रि को पूर्ण चन्द्र से

जग को शीतल करने वाले

संतापों को हरने वाले,

अवतरित हुए तुम, अंतर्यामी!

हे कृष्ण बनू तेरा अनुगामी!

किन्तु देवकी के ललाट पर,

कृष्ण! तुम्हे खोने का था डर,

तब तेरे ही दिव्य तेज से

चेतनाशून्य हुए सब प्रहरी,

चट चट टूट गयी सब बेडी

मानो बजती हो रण भेरी,

धर कर तुम्हे शीश पर…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 28, 2013 at 9:00pm — 17 Comments

पीछे हट जाने का डर है।

घोर तिमिर है, 

कठिन डगर है, 

आगे का कुछ नहीं सूझता,

पीछे हट जाने का डर है।

मन में इच्छाएं बलशाली 

शोणित में भी वेग प्रबल है,

रोज लड़ रहा हूँ जीवनसे

टूट रहा अब क्यों संबल है

मैंने अपनी राह चुनी है 

दुर्गम, कठिन कंटकों वाली 

जो ऐसी मंजिल तक पहुंचे 

जो लगे मुझे कुछ गौरवशाली

धूल धूसरित रेगिस्तानी हवा के छोंकें 

देते धकेल , आगे बढ़ने से रोकें 

सूखा कंठ, प्राण हैं अटके 

कब पहुंचूंगा निकट भला पनघट के

आगे बढ़ना भी दुष्कर…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 21, 2013 at 4:27pm — 21 Comments

और नहीं कुछ शेष रहे।

मुझे जलाओ पीडानल में, उस सीमा तक,
जिस पर अहंकार मरता है,
अभिमान आहें भरता है,
बाकि न कुछ द्वेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।

हे देव ! काट दो बंधन सारे ,
एक नहीं सब होवें प्यारे ,
न इर्ष्या का अवशेष रहे,
और नहीं कुछ शेष रहे।

चिंता छोड़ करें सब चिंतन
सुखमय हो जाए हर जीवन
उन्नति देश करे
और नहीं कुछ शेष रहे।

"मौलिक व अप्रकाशित"

 शब्द्कार : आदित्य  कुमार 

Added by Aditya Kumar on August 18, 2013 at 5:00pm — 9 Comments

कभी कभी मुझको लगता है जिन्दा जन आधार नहीं है

बार बार हमसे क्यों आकर उलझ उलझ कर

उलझ चुके कितने ही मुद्दे सुलझ सुलझ कर

ऐसे मुद्दे सुलझाने में वक्त करें क्यों जाया

अब तक सुलझा कर, बतला दो क्या पाया

उनको अपना स्वागत सत्कार समझ ना आया

किश्तवाड़ में हमें ईद त्यौहार समझ न आया

इतना सब कुछ हो जाने पर भारत चाहेगा मेल ?

शायद भारत को डर हो, कहीं रुक न जाये खेल। 

रत्ती का व्यापार नहीं है, चिंदी भर आकार नहीं है

भारत के उपकारों का उनको कुछ आभार नहीं है 

कभी कभी मुझको लगता है, भारत…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 14, 2013 at 9:46pm — 8 Comments

मै हूँ राष्ट्रपुरुष भारत, मै कवि के मुख से बोल रहा हूँ

पर्वत राज हिमालय जिसका मस्तक है

जिसके आगे बड़े बड़े नतमस्तक है

सिन्धु नदी की तट रेखा पर बसा हुआ

गंगा की पावन धारा से सिंचित है

जिसको तुम सोने की चिड़िया कहते थे

छोटे बड़े जहाँ आदर से रहते थे 

जहाँ सभी धर्मो को सम्मान मिला

जहाँ कभी न श्याम श्वेत का भेद  हुआ

जिसको राम लला की धरती कहते है

गंगा यमुना सरयू जिस पर बहते है

जिस धरती पर श्री कृष्णा ने जन्म लिया

जहाँ प्रभु ने गीता जैसा ज्ञान दिया

जहाँ निरंतर वैदिक…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 4, 2013 at 8:00pm — 22 Comments

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

मेरे मन का तुम आकर्षण हो

इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो

तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो

तुम ताजमहल से सुन्दर हो

 

बस तुम ही मेरी प्रियतम हो

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

 

तुम ही हो मेरा प्रेम राग

तुम ही हो मेरी प्रेम आग

मै भ्रमर बना तुम हो पराग

तुम मन मंदिर का हो चिराग

 

बस तुम ही मेरी प्रियतम हो

दुनिया में तुम सुन्दरतम हो

 

तुम ध्येय मेरे जीवन का हो

तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का…

Continue

Added by Aditya Kumar on August 1, 2013 at 6:43pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
5 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service