विश्व पटल पर अगणित होकर
कोटि कोटि नव योगी बनकर
वसुधैव कुटुंबकम रूपम
स्वप्न हमारा योग दिवस की
शुभ प्राची में सच सा ही प्रतीत होता है ।
भारत स्वयं ही जनक योग का
करे निवारण रोग रोग का
निज संस्कृति घोतक स्वरुप
आरोग्य प्रदायक विश्व शांति के हित
अर्पण करने का श्रेय लेने को मनोनीत होता है
विश्व गुरु वाली वह संज्ञा
केवल संज्ञा भर न रह कर
ज्ञान ज्योति जवाजल्यमान हो
पुनः विश्व तम को हरने का दम भरकर
भारत अपना परचम फहरा देने को तत्पर होता है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Aditya Kumar
Comment
आप इसी मंच पर भारतीय छन्द विधान समूह में पोस्ट हुए कुछ आलेख देख पाये हैं क्या ? आप उस समूह में कई तरह के आलेख देखेंगे. शीर्षक देखिये और आवश्यकतानुसार अध्ययन कीजिये.
जी आदरणीय अग्रज श्री Saurabh Pandey जी, प्रयास कर रहा हूँ। आप मुझे इतना बता दीजिये की मात्राएँ कैसे गिनते हैं और गुरु लघु क्या होते है। मैंने बारह्वी तक हिंदी में पढ़े तो थे पर अब तोह बिलकुल भूल गया हूँ। कोई हिंदी व्याकरण , छंद विधान आदि पर समग्र पुस्तक हो तो अवश्य ही बताएं
यह प्रस्तुति प्रभावित नहीं कर पायी, भाई आदित्य जी. पिछली रचना कुछ सही थी. आप पद्य वधा परध्यान केन्द्रित करें.
शुभेच्छाएँ
सही अक्षरी है, ज्वाजल्यमान
हार्दिक धन्यवाद श्रीमान Hari Prakash Dubey जी
सुन्दर प्रयास आ. Aditya Kumar जी , बधाई !
जी आदरणीय अग्रज श्री गिरिराज भंडारी जी वो गलती से हो गया, मै सुधार दूंगा इसे। सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।
आ. आदित्य भाई , बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाइयाँ ।
शायद -- जाजल्व्य मान , सही है क्या ? देख लीजियेगा
Sadar Dhanyawad aadarneey shri MUKESH SRIVASTAVA Ji
sundar
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