पुलक तरंग जान्हवी,
हरित ललित वसुंधरा,
गगन पवन उडा रहा है
मेघ केश भारती।
श्वेत वस्त्र सज्जितः
पवित्र शीतलम् भवः
गर्व पर्व उत्तरः
हिमगिरि मना रहा।
विराट भाल भारती
सुसज्जितम् चहुँ दिशि
हरष हरष विशालतम
सिंधु पग पखारता।
कोटि कोटि कोटिशः
नग प्रफ़्फ़ुलितम् भवः
नभ नग चन्द्र दिवाकरः
उतारते है आरती।
ओम के उद्घोष से
हो चहुँदिश शांति
हो पवित्रं मनुज मन सब।
और मिटे सब भ्रान्ति।
मौलिक एवं अप्रकाशित
आदित्य कुमार
Comment
आपका सदैव स्वागत है. साथ ही, आपसे निवेदन है कि आप इसी मंच के भारतीय छन्द विधान ग्रुप में पोस्ट हुए आलेखों को आवश्यकतानुसार देख जायें. परन्तु, सर्वप्रथम आप इअ मंच पर रेगुलर होेइये. अन्यथा आप की तारतम्यता ही नहीं बन पायेगी. इसी मंच के ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव के आयोजन में हिस्सा लें. आपको अवश्य छन्द लाभ होगा.
आदरणीया MAHIMA SHREE जी आप को कविता अच्छी लगी जानकर मुझे भी बहुत प्रसन्नता हुयी। आप का हार्दिक धन्यवाद एवं आपका सदैव स्वागत है।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय भैया Saurabh Pandey जी। मै इसे सीख कर ही रहूँगा जहाँ रुकावट आई फिर आप से ही पूछूंगा।
वाह ...आपको पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो गया....इस प्रवाहमयी रचना के लिए बहुत बधाई आपको
भलेही नैसर्गिक प्रयास या प्रभावित हुए प्रयास से यह रचनाकर्म हुआ है, किन्तु श्लाघनीय है. इस हेतु बधाई, भाई आदित्यजी.
प्रमाणिका, पञ्चचामर तथा अनंगशेखर छन्दों में पदों में लघु-गुरु की आवृति चलती है. लेकिन वहाँ लघु के बाद गुरु का क्रम होता है. आपने गुरु के बाद लघु का क्रम रखा है. यह तूणाक या चामर छन्द (७, ८) का कारण बनता है. इसमें पद गुरु वर्ण से ही समाप्त होता है.
दूसरे, आपने गुरु के स्थान पर कई बार द्विकलों का प्रयोग किया है जो कि ऐसे छन्दों के शुद्ध रूप में मान्य नहीं है. वैसे, वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो का उदाहरण लिया जा सकता है, जहाँ, उर्दू बहर के अनुसार गुरु की जगह द्विकल (दो समवेत लघु) को लेने की छूट ली गयी है.
लेकिन मैं आपसे इतना क्यों कह रहा हूँ ? क्योंकि आपमें छन्दों के प्रति ललक दिख रही है. तभी आप ऐसे शब्द-कौतुक कर पाये हैं.
रचना के कथ्य पर विशेष कुछ नहीं कहना है.
शुभेच्छाएँ
मै OBO का हृदय तल से धन्यवाद करता हूँ, पहली बार मेरी एक रचना फीचर हुयी है। मेरे लिए यह उल्लास का विषय है। आदरणीय श्री Er. Ganesh Jee "Bagi" जी उत्साह वर्धन के लिए आप का हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय आदित्य जी, आपकी कविता अच्छी हुई है और फलस्वरूप इस मंच पर फीचर हुई, बहुत बहुत बधाई.
आदरणीया kanta roy जी आपको हुयी अनुभूति ही मेरे लिए उत्साह वर्धन है , साभार ....
आभार आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी
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