गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
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दर्द कैसे कम हुआ ये आंसुओं पूछ लेना
क्या अन्धेरों से डरे थे, तुम दियों से पूछ लेना
खुद जले थे,और कैसे, वो अन्धेरों से लडे थे
जानना चाहो अगर तो,जुगनुओं से पूछ लेना
आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है
फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना
रहबरी के नाम पे तो लूट जारी है यहां पर
रास्ता भूलो अगर तो रहजनों से पूछ लेना
गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना
किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में
तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना
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गिरिराज भंडारी
मौलिक एवँ अप्रकाशित
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गुमशुदा खुशियाँ कहाँ रहने लगी है आज छुप कर
जो भी ग़म घेरे हुये हैं, उन ग़मों से पूछ लेना
किस तरह मैने गुज़ारा वक़्त अपना उन दिनों में
तुम घिरोगे जब कभी तो उलझनों से पूछ लेना...लाजबाब ...क्या बात है ..सादर बधाई के साथ
बहुत ही सुन्दर प्रयास है आपका! भाव तो बहुत ही अच्छे हैं। यदि बहर का भी जिक्र होता तो शिल्प को समझने में आसानी होती। इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
जितेन्द्र भाई , आपका बहुत बहुत धन्यवाद !!!
आदरणीया अन्नपूर्णा जी , ह्र्दय से आभार आपका !!!
विजय भाई , हौसला अफज़ाई के लिये बहुत शुक्रिया !! आभार !!
आपकी प्रतिक्रिया कितनी सही कितनी ग़लत है
फैसला करने से पहले दोस्तों से पूछ लेना.............वाह! बहुत शानदार शेर
हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज जी
नीरज भाई , आभार आपका !!
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