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चंद शब्द ................डॉ० प्राची

फासलों की 

हर पर्त को चीरते 

चंद शब्द...

जिनका चेहरा,

कभी दिखाई ही नहीं देता..

आखिर देखूँ भी तो क्यों ?

लुका छिपी में उलझाते मुखौटे  !

जिनकी आवाज,

कभी सुनायी ही नहीं देती..

आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?

कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़  !

जिनके अर्थ,

कभी बूझने नहीं होते..

आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?

सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !

जबकि,

हृदय गुहा में 

अंकित होते हों..

मुखौटों की कृत्रिमता से 

सदा सर्वदा अस्पृष्ट..

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये

उसके चंद शब्द !!

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 18, 2013 at 9:38pm

सुंदर भावपूर्ण रचना पर, बहुत बहुत बधाई आदरणीया डा.प्राची जी

Comment by D P Mathur on August 18, 2013 at 9:30pm

आदरणीय डॉ० प्राची जी,
काव्य कैसा होना चाहिए यह इस सुन्दर कविता को पढ़ने से मालूम चलता है शायद इस लेवल तक सीखने में काफी समय ओर मेहनत चाहिए। आपको अनेकों अनेक शुभ कामनाएं।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 18, 2013 at 8:02pm

आ0 प्राची मैम जी,   वाह!  चंद शब्द जो स्वयं को तार्किक और कोमल भावों से आच्छादित करके सदैव ही अच्छा या बुरा अपनी प्रकृति के आधार पर आकर्षित करता है। वाह! लाजवाब अप्रतिम रचना। हृदयतल से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by annapurna bajpai on August 18, 2013 at 7:41pm

आ0 प्राची जी सुंदर भावभिव्यक्ति, सटीक भाव संप्रेषित करती रचना हेतु आपको ढेरों शुभ कामनाएँ ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 18, 2013 at 4:40pm

जबकि,

हृदय गुहा में 

अंकित होते हों..

मुखौटों की कृत्रिमता से 

सदा सर्वदा अस्पृष्ट..

अर्थ की बंदिशों से परे..

ऊर्जित भाव स्पंदन 

अपने अनुगुंजन में 

चिदानन्द संजोये

उसके चंद शब्द !!  ... अहा !!!! हृदयस्पर्शी सुकोमल भाव से भरी अप्रितम रचना दी हृदयतल से ढेरों बधाई स्वीकारें.

दी एक गुजारिश है क्या मुझे भी इतनी ही सुन्दर अतुकांत कविता लिखना सिखाएंगी..

Comment by Vinita Shukla on August 18, 2013 at 1:37pm

बहुत सुंदर डॉ. प्राची जी. अद्भुत शब्द-संयोजन तथा भाव- सम्प्रेषण. कोटिशः बधाई.

Comment by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on August 18, 2013 at 11:04am

आदरणीय डॉ० प्राची जी,

सादर वन्दन. हृदयस्पर्शी भाव, अनुभूति का आनंद: 

अर्थ की बंदिशों से परे..  ऊर्जित भाव स्पंदन    अपने अनुगुंजन में  ..चिदानन्द संजोये..उसके चंद शब्द !!

अपने विश्वास, अडिग श्रद्धा का सुन्दर निरूपण!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 18, 2013 at 7:01am

बहुत सुन्दर , मनोदशा के बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!

Comment by Abhinav Arun on August 18, 2013 at 5:19am

अति सुन्दर 

भावपूर्ण 

सशक्त अभिव्यक्ति डॉ साहिबा . सादर नमन वंदन आपका !!

कृपया ध्यान दे...

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