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"क्या यह बात सच है कि कल तुम्हारी बेटी से बलात्कार किया गया ?"
"हाँ साहब, कल शाम खेतों से लौटते हुए मेरी बेटी की इज्ज़त लूटी गई !"
"क्या तुम जानते हो कि दोषी कौन है !?"
"मैं ही नही साहब, सारा गाँव जानता है उस पापी को जिसने मेरी बेटी को बर्बाद किया है !"
"मगर इतनी बड़ी बात होने के बावजूद भी तुमने थाने जाकर रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई ?"
"क्योंकि मैं अपनी बेटी का सामूहिक बलात्कार नही चाहता था ! "

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Comment by Abhinav Arun on December 24, 2010 at 6:29pm
यथार्थ चित्रण !!! साहस पूर्ण कथ्याभिव्यक्ति !!!! सच है हमारी व्यस्था किधर जा रही है !!! हे राम !!!
Comment by Rajesh Kumar Singh on December 22, 2010 at 9:38pm
मेरे सब्द कोष में ऐसे कोई सब्द ही नहीं हैं जिस के द्वारा मै इस रचना के
बारे में कहूं क्योंकि बिना कहे ही बहूत कुछ कहा  है  योगराज जी ने , अति
सुंदर रचना.मान्यवर  बधाई स्वीकार करें .
Comment by alka tiwari on December 22, 2010 at 6:54pm
yah sachcha hai aur pidadayak bhi par sirf aah bhar lene matra se kaam nahin chalega,,,Supreme court ne 1995 me is ghatana ke vyathit paksh/stri ko aarthik rahat uplabdh karane ke disha-nirdeh diyethe jo 2 lacs thi par ab mahila ayog ne ise 3 lakh karane ki sifaris karate hue aur bhi stri hitkari baton ki sifaris ki hai.. sirf aah nahi kuch JAGRITI lane ki bhI darkaar hai..
Comment by Lata R.Ojha on December 22, 2010 at 1:32pm
एक घिनौने सच को लघुकथा के रूप में प्रस्तुत किया है आपने. ये वो कटु सत्य है जिसका विषपान इस पीड़ा को ढोती लड़कियाँ करती हैं अक्सर या चुप हो जाती हैं सदा के लिए.. अति मार्मिक 
Comment by रंजना सिंह on December 22, 2010 at 1:17pm

saty hai....

isi karan aksar hi log himmat nahi kar paate kanoon tak jaane ki...

jhakjhorti hui atiprabhaavshaalee laghukatha... 

Comment by Ashutosh Kumar Singh on December 22, 2010 at 1:05pm
बेहतर
Comment by Anita Maurya on December 22, 2010 at 12:23pm
सच है ये.. शारीरिक रूप से तो एक बार पीड़ित होती है वो, लेकिन बात खुलने पर सामाजिक रूप से बार बार बेईज्ज़त होती है... बलात्कार की शिकार लड़कियों की दुखती रग पर हाथ रखा है आपने ..... बहुत ही बढ़िया रचना ....
Comment by Neelam Upadhyaya on December 22, 2010 at 11:32am
जी योगराज जी । हमारे समाज का यही घिनौना सच है । इस सच को उकेरने के लिए बहुत बधाई ।
Comment by Arvind Chaturvedi on December 22, 2010 at 10:19am
vah bhaisahab bahut khub aapne bahut sunder ghang se baat keh di hai .very nice
Comment by Bhasker Agrawal on December 22, 2010 at 8:34am
आज का सामाजिक सत्य बयां करती लघुकथा..बहुत खूब

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