तुम सोई
सपनों में खोई
अधर मंद मुस्काते हैं
ये सपने
चुपके से आकर
आखिर क्या कह जाते हैं।
बागों में
चंपा महकी है
मंद हवा
बहकी बहकी है
घनी रात को, तारे आकर
रूप नया दे जाते हैं।
रंग भरे
यह श्वेत चांदनी
कण कण में
इक मधुर रागिनी
नींद भरे बोझिल ये नयना
सुध बुध सब हर जाते हैं।
.
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार!
हम ओस-ओस भर जाते हैं .. .
वह भाई वाह ! शुभम्-शुभम्
आदरणीय विजय जी आभार!
आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!
सुंदर भाव लिए हुए प्रवाहमय नवगीत पर हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश जी!
आदरणीय विशाल भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय केवल भाई जी आपका बहुत आभार! आपको रचना पसंद आई, मेरा प्रयास सफल हुआ।
सादर!
आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत आभार!
वाह - वाह भाई जी......बहुत ही सुन्दर प्रणय गीत प्रस्तुत किया......हृदय से बधाई !!!!
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