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मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

कौन चला वनवास रे जोगी?

संजीव 'सलिल'
**

कौन चला वनवास रे जोगी?
अपना ही विश्वास रे जोगी.
*
बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो
मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.
*
भू -मंगल तज, मंगल-भू की
खोज हुई उपहास रे जोगी.
*
फिक्र करे हैं सदियों की, क्या
पल का है आभास रे जोगी?
*
गीता वह कहता हो जिसकी
श्वास-श्वास में रास रे जोगी.
*
अंतर से अंतर मिटने का
मंतर है चिर हास रे जोगी.
*
माली बाग़ तितलियाँ भँवरे
माया है मधुमास रे जोगी.
*
जो आया है वह जायेगा
तू क्यों हुआ उदास रे जोगी.
*
जग नाकारा समझे तो क्या
भज जो खासमखास रे जोगी.
*
राग-तेल, बैराग-हाथ ले
रब का 'सलिल' खवास रे जोगी.
*
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' सँग
तब ही मिले उजास रे जोगी.
*

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 26, 2010 at 9:36pm
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने कहा…

रवि नवीन भास्कर गणेश संग
अरुण लता राकेश रे जोगी.
विनय शारदा से है इतनी
सबको मिले उजास रे जोगी..

Comment by Lata R.Ojha on December 24, 2010 at 11:41pm
जो है उसको अनदेखा कर अनदेखे की आस करना,अपने अंतर्मन को टटोलने की सलाह ,मृत्यु शाश्वत सत्य जैसे कितने आवश्यक विषयों को पिरोया है आपने मुक्तिका की इस लड़ी में.. वाह ! 
Comment by Abhinav Arun on December 24, 2010 at 6:27pm
बहुत ही बढ़िया काव्य की सुन्दरतम अभिव्यक्ति !!!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2010 at 9:20am

वाह आचार्य जी वाह, बेहतरीन मुक्तिका है, जल बचाने की चिंता, जो आयेगा वो जायेगा का शाश्वत सत्य, अंतर से अंतर मिटाने का मंतर , सब कुछ तो बता दिया है आपने | सब मिलाकर एक बेहतरीन काव्यकृति | अंतिम पद मे मुझे लगता है कि टंकण त्रुटी के कारन संग की जगह सँग हो गया है |

बधाई आचार्य जी इस शानदार प्रस्तुति पर ....

Comment by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 8:06am
वाह वाह ...अति उत्तम ..सुन्दर ..कमाल ही कमाल
Comment by Rash Bihari Ravi on December 22, 2010 at 6:58pm
khubsurat bemisal
Comment by sanjiv verma 'salil' on December 22, 2010 at 6:45pm
dhanyavad.

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